मौलाना मजहरूल हक़

हिन्दू हों या मुसलमान, 

एक ही कश्ती के मुसाफिर हैं, 

डूबेंगे तो साथ, 

पार उतरेंगे तो साथ। 

मौलाना मजहरूल हक का यह कथन आज भी देश के लिए उतना ही प्रासंगिक है, जितना यह उस समय था। 


देश के समर्पित स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर शिक्षाविद, बिहार के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक मौलाना मजहरुल हक जी की आज पुण्यतिथि है।  आपने असहयोग आन्दोलन, चंपारण सत्याग्रह में महत्वपूर्ण योगदान दिया।  आपने इंग्लैंड में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद छपरा से वकालत शुरू की।  छपरा आपकी कर्मभूमि रही।  बिहार विद्यापीठ, बिहार नेशनल कॉलेज और प्रसिद्ध सदाकत आश्रम के स्थापना का श्रेय आपको है।  आपका जन्म 22 दिसम्बर, 1869 को पटना जिले के मनेर थाना के ब्रह्मपुर गाँव  में हुआ था। जहाँ बहुत से भूमि उनके रिश्तेदारों द्वारा दान की गई । वर्ष 1900 में तत्कालीन छपरा(सारण) जिला के फ़रीदपुर गांव में वे बस गए। उन्होंने गांव में एक घर का निर्माण किया और इसका नाम ‘आशियाना’ रखा। वर्ष 1927 में पंडित मोतीलाल नेहरु, 1928 में श्रीमती सरोजनी देवी, पं मदन मोहन मालवीय, के.एफ. नरिमन, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने फरीदपुर में इनके घर ‘आशियाना’ का दौरा किया। महात्मा गांधी उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे। मौलाना मजहरुल हक ने स्वतंत्रता सेनानियों की सहायता के लिए अपना पद, घर-बार, धन संपत्ति सब कुछ दान कर दिया। ऐसा त्याग कम ही देखने को मिलता है। उन्होंने अपना घर व 16 बीघा जमीन स्वाधीनता सेनानियों के सहयोग स्वरूप दान दे दिया। यह उनके त्याग और बलिदान की मिसाल है। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधी और देशरत्न राजेंद्र बाबू के साथ सक्रिय भूमिका निभाई। युवा पीढ़ी को ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी के आदर्शों पर चलने की जरूरत है।

आपकी स्मृति को नमन! 

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