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Showing posts from February, 2025

ओरियंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स(ओबीसी) स्थापना दिवस

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  ओरियंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स(ओबीसी) स्थापना दिवस  सुनहरी यादें ❤️ ओरियन्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स  स्थापना दिवस के अवसर पर सुनहरी यादों की हार्दिक बधाई! संगठन भले समय के साथ समाहित हो जाए परंतु उसके द्वारा निर्मित संस्कार एवं संस्कृति सदैव आपके भीतर जीवंत बने रहेंगे। 🙏🌺 एक बार फिर से वहीं पोस्ट जिसे वर्ष २०२० में मैंने लिखा था, आशा है यह पोस्ट आप सभी को पुन: यादों के संजाल में ले जाएगा।  ‘ओरियन्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स’ (१९४३-२०२०) आज बैंक का एक और स्थापना दिवस है।भले ही यह संगठन अब इतिहास हो गया । पर इसके द्वारा निर्मित संस्कार अभी भी जिंदा है । कुछ चीजें हमारे-आपके वश में कभी नहीं रहती। नियति ही सब कुछ तय करती है। पर एक मानवीय स्वभाव है -लगाव होना।  यहीं लगाव हमें प्रकृति से, अपनों से जोड़ती है। प्रकृति से जुड़ाव ही  संसार को सशक्त बनाता है, जिससे व्यक्ति, समाज व संगठन का निर्माण होता है।  संगठन भी तो परिवार की ही भांति होते हैं, जिससे बिछुड़ने की टीस हम सभी में ताउम्र बनी रहती है। यहीं कारण है कि हम सब चाहकर भी ओबीसी के हरे बोर्ड और इसकी  प्यारी धुन ‘where e...

कवि नरेश मेहता

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  सुविचार “सच तो यह है कि समय अपने बीतने के लिए किसी की भी स्वीकृति की प्रतीक्षा नहीं करता।‘’ – श्रीनरेश मेहता आज ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित नरेश मेहता की जयंती है।  आप हिंदी के यशस्वी कवि एवं उन शीर्षस्थ लेखकों में से हैं जो भारतीयता की अपनी गहरी दृष्टि के लिए जाने जाते हैं।  नरेश मेहता ने आधुनिक कविता को नयी व्यंजना के साथ नया आयाम दिया। उनकी एक कविता ‘वृक्ष-बोध’ वृक्ष -बोध -श्रीनरेश मेहता आज का दिन एक वृक्ष की भाँति जिया   और प्रथम बार वैष्णवी संपूर्णता लगी। अपने में से फूल को जन्म देना   कितना उदात्त होता है यह केवल वृक्ष जानता है,   और फल— वह तो जन्म-जन्मांतरों के पुण्यों का फल है।   स्तवक के लिए जब एक शिशु ने फूल नोंचे   मुझे उन शिशु-हाथों में देवत्व का स्पर्श लगा।   कितना अपार सुख मिला जब किसी ने   मेरे पुण्यों को फल समझ ढेले से तोड़ लिया।   किसी के हाथों में पुण्य सौंप देना ही तो फल-प्राप्ति है,   सिंधु को नदी अपने को सौंपती ही तो है। सच आज का दिन एक वृक्ष की भाँति जियया  और प्रथम बार वानस्पतिक समर्पणता जगी। स्र...

स्वामी दयानंद सरस्वती

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  आज 12 फरवरी है। स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने सनातन सभ्यता के महान ग्रंथ ‘वेदों की ओर लौटो’ का आह्वान किया। आधुनिक भारत के महान् चिंतक, धर्मवेत्ता, समाज सुधारक, “आर्य समाज" के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को काठियावाड़ (गुजरात)  के टंकारा गांव में हुआ था। उनके बचपन का नाम मूलशंकर था। वे संन्यासी थे और संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे । आप 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में सनातन पंथ के पुनरुद्धार आंदोलन के सबसे बड़े प्रणेता माने जाते हैं। ब्रिटिश सरकार द्वारा 1813 में चार्टर एक्ट लाए जाने के बाद ईसाई पादरियों ने पर्याप्त संख्या में भारत आना आरंभ कर दिया था। इन ईसाई धर्म प्रचारकों ने षडयंत्रपूर्वक सामाजिक कुरीतियों को हिंदू धर्म में सम्मिलित कर कठोर आघात पहुँचाएं ।  19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में कई सामाजिक व धार्मिक आंदोलन हुए। स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने गुरु मथुरा के स्वामी विरजानंद से वेदों का ज्ञान प्राप्त करके हिंदू धर्म सभ्यता और भाषा के प्रचार का कार्य आरंभ किया। आपने सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिंदी में करके र...