Wednesday, October 2, 2024

केंद्रीय हिंदी संस्थान में मुख्य अतिथि






























दिनांक ३०.०९.२०२४ को केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र द्वारा आयोजित 475वें नवीकरण पाठ्यक्रम के समापन समारोह एवं 476वें नवीकरण पाठ्यक्रम के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में मुझे सहभागी होने का अवसर प्राप्त हुआ।  कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। समारोह की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद के क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में पंजाब नेशनल बैंक के मुख्य प्रबंधक (राजभाषा) डॉ. साकेत सहाय एवं सम्मानित अतिथि के रूप में डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र उपस्थित थे। साथ ही पाठ्यक्रम प्रभारी डॉ. फत्ताराम नायक व कार्यालय अधीक्षक डॉ. एस. राधा भी मंच पर उपस्थित थे। इस पाठ्यक्रम में कुल 20 (महिला-11, पुरुष-09) प्रतिभागी अध्यापकों ने निमित्त उपस्थित रहकर पाठ्यक्रम पूर्ण किया।

मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में मैंने कहा कि आप सभी कि हिंदीतर प्रदेशों के अध्यापक हैं अत: आपकी भूमिका एक शिक्षक के साथ-साथ राष्ट्रीय संवाद के वाहक के रूप में भी है। आप सभी अपने विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए ज्ञान के प्रवाहक के साथ संवाद शिक्षक भी है। आपकी भूमिका दोहरी है। आपकी मातृभाषा हिंदी नहीं है फिर भी आप सभी हिंदी की समृद्धि के लिए कार्य कर रहे हैं, राष्ट्र की प्रगति का यह बड़ा सूत्र है।मुझे आशा ही नहीं वरन् पूर्ण विश्वास है कि इस नवीकरण पाठ्यक्रम के माध्यम से आप सभी के हिंदी के ज्ञान में अवश्य वृद्धि होगी। मैं संस्थान को इस हेतु बधाई देता हूँ। मुझे गर्व है कि मैं केंद्रीय हिंदी संस्थान का विद्यार्थी रहा हूँ और आज इस संस्थान में मुख्य अतिथि के रूप में आकर मुझे गर्व की अनुभूति हो रही है। मैंने इस अवसर पर संस्थान के संस्थापक  पद्मभूषण तेलुगू भाषी डॉ. मोटूरी सत्यनारायण को भी उनके योगदान के लिए स्मरण किया। हम सभी शपथ लें कि उनकी मुहिम को आगे बढ़ाने में अपनी सार्थक भूमिका निभाएँगे। इस अवसर पर 475वें नवीकरण पाठ्यक्रम के प्रतिभागियों द्वारा हस्तलिखित पत्रिका ‘स्वर्ण आंध्र प्रदेश’ का विमोचन भी किया गया। साथ ही, इस अवसर पर नवीकरण पाठ्यक्रम के दौरान लिए गए पर परीक्षण का परिणाम भी घोषित किया गया। इस अवसर पर स्थानीय विद्यालयों के बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया। इस बेहतरीन आयोजन व मुझे आमंत्रित करने के लिए संस्थान के क्षेत्रीय निदेशक डॉ गंगाधर वानाडे जी का विशेष आभार। उनके व संस्थान के समस्त साथियों के आत्मीयपूर्ण  व्यवहार के लिए मेरी ओर से विशेष धन्यवाद। इस अवसर पर मैंने वानाडे जी को प्रयोज़नमूलक हिंदी को समर्पित तथा दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी, संस्कृति मंत्रालय से साहित्य श्री कृति से सम्मानित कृति ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया : भाषिक संस्कार एवं संस्कृति’ तथा वित्त, बैंकिंग व भाषा : विविध आयाम, जिसकी पांडुलिपि मंत्रिमंडल सचिवालय, बिहार सरकार से चयनित व अनुदानित की गयी थी आदि पुस्तकें उन्हें भेंट की। साथ ही उन्होंने मुझे दक्षिण में हिंदी व स्थानीय भाषाओं के विकास व समन्वय को समर्पित संस्थान की पत्रिका “समन्वय” भेंट की। 

#साकेत_विचार

-डॉ साकेत सहाय

लाल बहादुर शास्त्री - कर्त्तव्यनिष्ठ और सत्यनिष्ठ व्यक्तित्व के स्वामी




 




आज महान देशभक्त, भारतरत्न, भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की १२२ वीं जयंती है।  भारत-पाक युद्ध में जय जवान! जय किसान! का उद्घोष करने वाले शास्त्रीजी की जयंती पर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व को शत शत नमन! 
आज बहुत कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि वे पंजाब नैशनल बैंक के निष्ठावान ग्राहक भी रहे। इस पुण्य अवसर पर शास्त्री जी से जुड़ा यह संस्मरण हम सभी के लिए प्रेरक कथा की भांति है। 

तथ्य यह है कि अपनी सादगी भरी जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री जी ने लाल बहादुर शास्त्री जी के ताशकंद में हुए असामयिक निधन के बाद पीएनबी से लिए गए कार लोन की बची हुई ₹5,000 की राशि को सरकार से ऋण माफ़ी की मिली पेशकश को मना कर अपनी बची हुई पेंशन राशि से चुकाई थी। यह उनके कर्तव्यनिष्ठा का शानदार उदाहरण है। शास्त्री जी के कार ख़रीदने से जुड़े वाक़ये को सुनकर हम सभी बहुत कुछ सीख सकते हैं।  यह घटना वर्ष 1964 की है। चूँकि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी शास्त्री जी के पास अपना घर तो क्या एक कार तक नहीं थी। 

लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को वाराणसी के पास मुगलसराय में हुआ था। उनके बचपन का नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था।  बाद में संस्कृत में स्नातक की योग्यता के बाद वे ‘शास्त्री’ कहलाए। लाल बहादुर शास्त्री के पिता शरद प्रसाद श्रीवास्तव एक शिक्षक थे। जब वे मात्र डेढ़ साल के थे तो उनके पिता का निधन हो गया था। उनकी मां, रामदुलारी देवी, जो अभी बीस वर्ष की थीं, अपने तीन बच्चों के साथ अपने पिता के घर चली गईं। जहां उनका लालन- पालन अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में हुआ और वे ‘गुदड़ी के लाल’ कहलाए। 

शास्त्री जी अपनी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा के बल पर देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचे। प्रधानमंत्री बनने के बाद एक बार उनके बच्चों ने उलाहना दिया कि अब आप भारत के प्रधानमंत्री हैं, अब हमारे पास अपनी कार होनी चाहिए। शास्त्री जी के पास अपनी कोई कार नही थी और उनके बच्चे कभी-कभी स्कूल जाने के लिए शास्त्री जी के पीएमओ की कार का भी इस्तेमाल करते थे। परंतु लाल बहादुर शास्त्री जी किसी भी तरह के निजी कार्य के लिए इसके नियमित प्रयोग की अनुमति नहीं देते थे और घर में बच्चों को एक कार की ज़रूरत थी। उस ज़माने में एक फ़िएट कार का मूल्य ₹12,000 होता था। तब शास्त्री जी ने अपने एक सचिव से कहा कि ज़रा देखें कि उनके बैंक खाते में कितने रुपये हैं? तब उनका बैंक बैलेंस था ₹7,000 । जब बच्चों को पता चला कि शास्त्री जी के पास कार ख़रीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं तो उन्होंने कहा कि कार मत ख़रीदिए। 

लेकिन शास्त्री जी ने कहा कि वो बाक़ी के पैसे बैंक से लोन लेकर जुटाएंगे। परिवार के पसंद की ख़ातिर शेष बची राशि के लिए शास्त्री जी ने भारत के स्वदेशी बैंक पंजाब नैशनल बैंक में ₹5,000 के ऋण हेतु आवेदन किया, जिसकी मंजूरी उसी दिन उन्हें मिल गई। 

दुर्भाग्य से एक साल बाद ही लोन चुकाने से पहले ही उनका निधन हो गया। उनके बाद प्रधानमंत्री बनीं श्रीमती इंदिरा गाँधी ने सरकार की तरफ़ से उनके ऋण को माफ़ करने की पेशकश की लेकिन उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने इसे स्वीकार नहीं किया । बैंक की इस बची हुई ॠण राशि को लाल बहादुर शास्त्री जी के असामयिक निधन के बाद उनकी धर्मपत्नी ललिता शास्त्री जी ने अपनी पेंशन से कार की सारी किस्तें चार साल में चुका दी। 

शास्त्री जी और उनका परिवार जहाँ-जहाँ भी गया, वह कार उनके साथ गया।  वर्तमान में यह कार दिल्ली में लाल बहादुर शास्त्री की स्मृति में स्थापित संग्रहालय में रखी हुई है और दूर- दूर से लोग इसे देखने आते हैं। 

उनके कार से जुड़ा एक और संस्मरण है जब वर्ष 1964 में लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो उनके बेटे अनिल शास्त्री दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में पढ़ रहे थे।  उस ज़माने में अभिभावक-शिक्षक(पैरेंट्स-टीचर) बैठक (मीटिंग) नहीं हुआ करती थी। हाँ अभिभावकों को छात्र का  परिणाम पत्र (रिपोर्ट कार्ड)  लेने के लिए ज़रूर बुलाया जाता था। शास्त्री जी ने भी तय किया कि वो अपने बेटे का रिपोर्ट कार्ड लेने उनके स्कूल जाएंगे। स्कूल पहुंचने पर वो स्कूल के गेट पर ही उतर गए। हालांकि सुरक्षा गार्ड ने कहा कि वो कार को स्कूल के परिसर में ले आएं, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। 

उनके प्रेरक व्यक्तित्व से जुड़ा एक प्रसंग -


 प्रेरक प्रसंग 



स्टेशन की आखिरी ट्रेन प्लेटफार्म से रवाना हो चुकी थी । एक वृद्ध महिला ट्रेन के इंतजार में बैठी हुई हैं। अगली ट्रेन कल सुबह आएगी... एक कुली ने यह देखा और मां से पूछा - माताजी, आप कहां जा रही हैं? मैं दिल्ली अपने बेटे के पास जाऊंगी । आज कोई ट्रेन नहीं है माताजी । महिला असहाय दिख रही थी। कुली ने दयालुता दिखाते हुए महिला को प्रतीक्षालय में आश्रय देने की पेशकश की। वह सहमत हो गई। कुली ने उनसे उसके बेटे के बारे में पूछा.. मां ने जवाब दिया कि उसका बेटा रेलवे में काम करता है। नाम बताओ। देखें संपर्क हो सकता है या नहीं... वृद्ध महिला ने कुली से कहा - वह मेरा लाल है, सब उसे लाल बहादुर शास्त्री कहते हैं! (वृद्ध महिला ने कहा) भारत माँ का  महान सपूत तब भारत का रेल मंत्री था। एक पल में, पूरे स्टेशन में हलचल मच गई। जल्द ही, सैलून कार आ गई। वृद्ध महिला हैरान थी। लाल बहादुर शास्त्री को कुछ भी पता नहीं था ।  ऐसे भी लोग होते थे , समाज में अब भी ऐसे लोग हैं बस उन्हें प्रोत्साहन और हौसले की जरूरत है । 🙏

शास्त्री जी से जुड़े ये संस्मरण उनके प्रेरक व्यक्तित्व होने के अनुकरणीय उदाहरण हैं। 

सादर नमन🙏🌺

डॉ साकेत सहाय

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित लेखक

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#साकेत_विचार


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