चित्रकार इमरोज या इंद्रजीत जी के निधन के बाद बाजार एवं चर्चा पोषित लेखनी के समर्थक लिक्खाड़ों से सोशल मीडिया ‘अनसोशल’ होता जा रहा है। साहित्य प्रेमियों, बाज़ार से भी अलग एक अनुशासित दुनिया है। अन्यथा😔 साहित्य का अर्थ जिस प्रकार जड़ के बिना पौधा सूख जाता है, उसी प्रकार मूल के अभाव में लिखा हुआ साहित्य भी निरर्थक होता है। दुर्भाग्यवश, आजकल लोग बिना मूल को जाने ही केवल अपनी ‘उद्भभावना’ को ही सर्वांग सत्य मानने लगे है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि लेखक, पत्रकार वैज्ञानिक ज्ञान एवं सार्थक समझ के साथ ही अपनी मूल परंपरा, विरासत को जाने-समझे। जिस प्रकार जड़ का अस्तित्व पौधे से पहले होता है उसी प्रकार साहित्य का स्थायित्व भी उसके मूल पर टिका हुआ है। तभी वह भावी पीढ़ी को मार्गदर्शित करने में सक्षम हो सकेगा। नकारात्मकता राष्ट्र, समाज की गति को बाधित करती है। ऐसे में साहित्य की सशक्त भूमिका को समझना बेहद ज़रूरी है। आवश्यक यह है कि हम सभी ‘भारतीय दृष्टि, सम्यक सृष्टि’ के भाव बोध को सशक्तता प्रदान करने में सहायक बने। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी अपने निबंध ‘साहित्य क...