Saturday, December 30, 2023

आओ चलें थोड़ा

 *आओ चलें थोड़ा* 


आओ चलें !

वाहन को

घर पे ही छोड़ते हैं -

कुछ दूर थोड़ा

पैदल चलते हैं -

एक नहीं तो

आधा किलोमीटर चलते हैं -

सवेरे नहीं तो

शाम को चलते हैं -

काम नहीं है तो

बिना काम चलते हैं -


केवलं मैंने लिखा ही नहीं

किसीने गाया भी है -

न हाथी होगा -

न घोड़ा होगा -

वहाँ तो

पैदल ही जाना होगा -


तेल बचाइए -

सेहत बचाइए -

और गुनगुनाते रहिए ,

" जीवन चलने का नाम

चलते रहो सुबह शाम "

आओ चलें थोड़ा!

चिट्ठियाँ




 “खो गयी वो......”चिठ्ठियाँ”जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे

बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे...!!


“और बीच में लिखी होती थी “जिंदगी”


नन्हें के आने की “खबर”

“माँ” की तबियत का दर्द

और पैसे भेजने का “अनुनय”

“फसलों” के खराब होने की वजह...!!


कितना कुछ सिमट जाता था एक

“नीले से कागज में”...


जिसे नवयौवना भाग कर “सीने” से लगाती

और “अकेले” में आंखो से आंसू बहाती !


“माँ” की आस थी “पिता” का संबल थी

बच्चों का भविष्य थी और

गाँव का गौरव थी ये “चिठ्ठियां”


“डाकिया चिठ्ठी” लायेगा कोई बाँच कर सुनायेगा

देख देख चिठ्ठी को कई कई बार छू कर चिठ्ठी को

अनपढ़ भी “एहसासों” को पढ़ लेते थे...!!


अब तो “स्क्रीन” पर अंगूठा दौड़ता है

और अक्सर ही दिल तोड़ता है

“मोबाइल” का स्पेस भर जाए तो

सब कुछ दो मिनट में “डिलीट” होता है...


सब कुछ “सिमट” गया है 6 इंच में

जैसे “मकान” सिमट गए फ्लैटों में

जज्बात सिमट गए “मैसेजों” में

“चूल्हे” सिमट गए गैसों में


और इंसान सिमट गए पैसों में।

Sunday, December 24, 2023

साहित्य का अर्थ


चित्रकार इमरोज या इंद्रजीत जी के निधन के बाद बाजार एवं चर्चा पोषित लेखनी के समर्थक लिक्खाड़ों से सोशल मीडिया ‘अनसोशल’ होता जा रहा है। साहित्य प्रेमियों, बाज़ार से भी अलग एक अनुशासित दुनिया है। अन्यथा😔 

साहित्य का अर्थ

जिस प्रकार जड़ के बिना पौधा सूख जाता है, उसी प्रकार मूल के अभाव में लिखा हुआ साहित्य भी निरर्थक होता है। दुर्भाग्यवश, आजकल लोग बिना मूल को जाने ही केवल अपनी ‘उद्भभावना’ को ही सर्वांग सत्य मानने लगे है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि लेखक, पत्रकार वैज्ञानिक ज्ञान एवं सार्थक समझ के साथ ही अपनी मूल परंपरा, विरासत को जाने-समझे। जिस प्रकार जड़ का अस्तित्व पौधे से पहले होता है उसी प्रकार साहित्य का स्थायित्व भी उसके मूल पर टिका हुआ है।  तभी वह भावी पीढ़ी को मार्गदर्शित करने में सक्षम हो सकेगा। नकारात्मकता राष्ट्र, समाज की गति को बाधित करती है।  ऐसे में साहित्य की सशक्त भूमिका को समझना बेहद ज़रूरी है। आवश्यक यह है कि हम सभी  ‘भारतीय दृष्टि, सम्यक सृष्टि’ के भाव बोध को सशक्तता प्रदान करने में सहायक बने।   

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी अपने निबंध ‘साहित्य की महत्ता’ में कहते है –‘ज्ञान-राशि के संचित कोष का ही नाम साहित्य है। ‘  इन्हीं गुण-तत्त्वों के कारण भारतीय परंपरा एवं इतिहास में साहित्य को विशिष्ट स्थान प्राप्त है।  हमारा इतिहास, ज्ञान-विज्ञान, कला, तर्क आदि सभी कुछ का नाम साहित्य है।  

साहित्य वहीं सफल होता है जिसकी पृष्ठभूमि में मनुष्यता है, संवेदना है, सच्चाई है।  एक साहित्यकार कालजयी होता है। तुलसीदास जी ने मर्यादा और कर्तव्य बोध को सबसे ऊपर रखा।  यही तुलसीदासजी के साहित्य के स्थायी अमरता का तत्त्व बोध है।  साहित्य हमें व्यापक दृष्टि देता हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि हम ऐसे साहित्य का सृजन करें जो सार्वकालिक हो, समदृष्टि रखें और हमारी संस्कृति को व्यापक दृष्टि प्रदान करता हो।  भावी पीढ़ी को दिशा देने हेतु इस साहित्य का अनुसरण किया जाना बेहद जरूरी है।  आज के साहित्यकारों, इतिहासकारों को इसे जानने-समझने की आवश्यकता है कि साहित्य देश एवं संस्कृति को जानने-समझने का सशक्त माध्यम है।  जिसमें संतुलन हो, समग्रता हो, सशक्तता हो, भावी पीढी के जानने-समझने की सोच हो। भारत अपनी समृद्ध परंपरा, संस्कृति के बल पर ही सदियों से दुनिया को राह दिखाता रहा है अब इसे मजबूत रखने की ज़िम्मेदारी हम सभी की है।  


साहित्य का अर्थ 

साहित्य चेतना है

साहित्य उमंग है

साहित्य जागृति है

साहित्य तरंग है। 

साहित्य वेदना है

वेदना को समझने

की संवेदना है। 

………………….

साहित्य पशुता में 

मानवता का रंग

समाज की संवेदना

दिलों की अरमान 

जीवन के पंख की उड़ान 

………………….

रिश्तों की उड़ान 

माँ के लिए बच्चों की उड़ान 

देश के निवासियों की पहचान 

पिता के लिए परिवार की समृद्धि का नाम 

भाई के लिए बहन की खुशी 

बहन के लिए भाई की समृद्धि

पति के लिए पत्नी का प्यार

पत्नी के लिए पति की खुशी

यही साहित्य है। 

……………

साहित्य 

पत्थर से पत्थर रगड़ कर हुई 

आग के आविष्कार का नाम है

कृषक के पसीने से

सिंचित फसल का नाम है 

चिकित्सक के शोध का

भाव बोध है

……………

साहित्य 

प्रभु द्वारा शबरी के जूठे बेर का

प्रेम बोध है

श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता 

विक्रम और वैताल के

धैर्य और चातुर्य का मेल

अकबर के प्रश्न

बीरबल के समाधान का नाम

है साहित्य

……………

साहित्य रंग है

साहित्य भाव है

साहित्य जीवन बोध है।

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©डॉ साकेत सहाय


धन्यवाद, प्रणाम , नमस्कार ।

#साकेत_विचार #साहित्य

#हिन्दी #लिखना #कविता

#इमरोज

Tuesday, December 5, 2023

भाषा अभिमान और भाषा दुराग्रह "

 "भाषा अभिमान और भाषा दुराग्रह "


भाषा अभिमान और भाषा दूराग्रह दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। भाषा अभिमान का अर्थ है अपनी भाषा पर गर्व करना और उसे अन्य भाषाओं से श्रेष्ठ मानना। भाषा दुराग्रह का अर्थ है अपनी भाषा के प्रति पक्षपाती होना और अन्य भाषाओं के प्रति पूर्वाग्रह रखना।


संत ज्ञानेश्वर जी ने "ज्ञानेश्वरी" लिखी जो गीता ज्ञान का प्राकृत मराठी अनुवाद था। तत्कालीन पंडितों ने इसका विरोध किया क्योंकि संस्कृत में कैद ज्ञान प्राकृत में प्रकट हुआ था। यह भाषा दुराग्रह का एक उदाहरण है।


आधुनिक समय में भी हम भाषा दुराग्रह से ग्रसित हैं। उदाहरण के लिए, भारत में कई लोग अंग्रेजी को अन्य भाषाओं से श्रेष्ठ मानते हैं। वे अंग्रेजी में बात करने वाले लोगों को अधिक शिक्षित और सभ्य मानते हैं। यह भाषा दुराग्रह का एक उदाहरण है।


भाषा अभिमान और भाषा दुराग्रह दोनों ही हानिकारक हैं। भाषा अभिमान से भाषाई विविधता का नुकसान होता है। भाषा दुराग्रह से सामाजिक विभाजन और तनाव बढ़ता है।


अनुवाद भाषा अभिमान और भाषा दुराग्रह को दूर करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। अनुवाद के माध्यम से हम विभिन्न भाषाओं के ज्ञान और संस्कृतियों से परिचित हो सकते हैं। यह हमें अपनी भाषा के प्रति अधिक विनम्र और सहिष्णु बनाता है।


संत महिपति कृत "भक्त विजय" ग्रंथ का अनुवाद अंग्रेजी के साथ दक्षिण भारत के सभी भाषाओं में उपलब्ध हुआ है। यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे अनुवाद भाषा अभिमान और भाषा दुराग्रह को दूर कर सकता है।


मीराबाई की कविता "माई री! मैं तो लियो गोविंदो मोल"  एक महत्वपूर्ण संदेश देती है। मीराबाई कहती हैं कि उन्होंने गोविंद को अपना पति चुना है, चाहे कोई उन्हें किसी भी तरह से आंकें। इसी भजन का सुंदर रूपांतर मराठी कवि,गीतकार ग  दि माडगूळकर जी ने मराठी फिल्म  " जगाच्या पाठीवर" में "बाई मी विकत घेतला श्याम" गीत लिखकर अजरामर किया है।

  

भाषा अभिमान और अस्मिता एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। भाषा एक समुदाय की पहचान और संस्कृति का प्रतीक होती है। जब कोई व्यक्ति अपनी भाषा के प्रति अभिमान रखता है, तो वह अपनी संस्कृति और पहचान के प्रति भी अभिमान रखता है।


भाषा अभिमान का अर्थ है अपनी भाषा के प्रति गौरव और सम्मान की भावना रखना। यह भावना किसी व्यक्ति को अपनी भाषा का उपयोग करने और उसका प्रचार करने के लिए प्रेरित करती है। भाषा अभिमान किसी व्यक्ति की आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास को भी बढ़ाता है।


भाषा अस्मिता का अर्थ है अपनी भाषा के साथ अपनी पहचान का बोध करना। यह भावना किसी व्यक्ति को अपनी भाषा को अन्य भाषाओं से अलग समझने और उसका सम्मान करने के लिए प्रेरित करती है। भाषा अस्मिता किसी व्यक्ति को अपनी भाषा के लिए लड़ने और उसका संरक्षण करने के लिए प्रेरित करती है।


भाषा अभिमान और अस्मिता के कुछ महत्वपूर्ण लाभ निम्नलिखित हैं:


* **भाषा की रक्षा और संरक्षण:** भाषा अभिमान और अस्मिता लोगों को अपनी भाषा को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करती है। यह भाषा की विविधता को बनाए रखने में भी मदद करता है।

* **सांस्कृतिक पहचान:** भाषा अभिमान और अस्मिता लोगों को अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में मदद करती है। यह लोगों को अपने अतीत और परंपराओं से जुड़े रहने में मदद करता है।

* **आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास:** भाषा अभिमान और अस्मिता लोगों के आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास को बढ़ाता है। यह लोगों को अपनी भाषा का उपयोग करने और अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए अधिक आत्मविश्वास महसूस कराता है।


भाषा अभिमान और अस्मिता का निर्माण करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:


* **भाषा शिक्षा:** भाषा शिक्षा के माध्यम से लोगों को अपनी भाषा के बारे में जागरूक किया जा सकता है। यह उन्हें अपनी भाषा के इतिहास, संस्कृति और महत्व के बारे में जानने में मदद करता है।

* **भाषा प्रचार:** भाषा प्रचार के माध्यम से लोगों को अपनी भाषा का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। यह उन्हें अपनी भाषा के बारे में बात करने, लिखने और पढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

* **भाषा साहित्य:** भाषा साहित्य के माध्यम से लोगों को अपनी भाषा की समृद्धि और विविधता से परिचित कराया जा सकता है। यह उन्हें अपनी भाषा के साहित्य को पढ़ने और उसका आनंद लेने के लिए प्रेरित करता है।


भाषा अभिमान और अस्मिता किसी भी देश या समुदाय के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये भावनाएँ लोगों को अपनी संस्कृति और पहचान को बनाए रखने और बढ़ावा देने में मदद करती हैं।


**भाषा दुराग्रह** और **भाषा विद्वेष** दो ऐसी अवधारणाएँ हैं जो अक्सर एक-दूसरे के साथ जोड़कर देखी जाती हैं। हालांकि, दोनों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं।


**भाषा दुराग्रह** का अर्थ है भाषा का उपयोग किसी विशेष समूह के लोगों के प्रति पक्षपातपूर्ण या भेदभावपूर्ण तरीके से करना। यह पक्षपात सचेत या अनजाने में हो सकता है। भाषा दुराग्रह के कुछ उदाहरणों में शामिल हैं:


* किसी विशेष समूह के लोगों के बारे में नकारात्मक या अपमानजनक शब्दों का उपयोग करना

* किसी विशेष समूह के लोगों के बारे में सामान्यीकरण करना

* किसी विशेष समूह के लोगों को नकारात्मक या भेदभावपूर्ण तरीके से चित्रित करना


**भाषा विद्वेष** का अर्थ है भाषा का उपयोग किसी विशेष समूह के लोगों के प्रति घृणा या हिंसा को बढ़ावा देने के लिए करना। भाषा विद्वेष अक्सर भाषा दुराग्रह से अधिक गंभीर होता है, क्योंकि यह न केवल पूर्वाग्रह को व्यक्त करता है, बल्कि हिंसा या अन्य हानिकारक व्यवहार को प्रोत्साहित भी करता है। भाषा विद्वेष के कुछ उदाहरणों में शामिल हैं:


* किसी विशेष समूह के लोगों के खिलाफ हिंसा या भेदभाव के लिए भड़काना

* किसी विशेष समूह के लोगों के खिलाफ घृणा या नफरत को फैलाना

* किसी विशेष समूह के लोगों को बदनाम करना या उनका अपमान करना


भाषा दुराग्रह और भाषा विद्वेष दोनों ही समाज में नुकसान पहुंचा सकते हैं। भाषा दुराग्रह पूर्वाग्रह और अलगाव को बढ़ावा दे सकता है, जबकि भाषा विद्वेष हिंसा और अन्य हानिकारक व्यवहार को जन्म दे सकता है।


भाषा दुराग्रह और भाषा विद्वेष को कम करने के लिए कई चीजें की जा सकती हैं। इनमें शामिल हैं:


* लोगों को भाषा दुराग्रह और भाषा विद्वेष के बारे में शिक्षित करना

* भाषा दुराग्रह और भाषा विद्वेष को बढ़ावा देने वाली सामग्री के खिलाफ आवाज उठाना

* भाषा दुराग्रह और भाषा विद्वेष को कम करने के लिए कानून और नीतियों को लागू करना


भाषा दुराग्रह और भाषा विद्वेष को रोकने के लिए सभी लोगों की भागीदारी की आवश्यकता है। हम सभी को भाषा के प्रभाव के बारे में जागरूक होना चाहिए और भाषा का उपयोग जिम्मेदारी से करना चाहिए।


हमें अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए, लेकिन हमें अन्य भाषाओं और संस्कृतियों का भी सम्मान करना चाहिए।

Sunday, December 3, 2023

देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद

अपनी सादगी एवं सरलता से देश की माटी को सुशोभित करने वाले अद्भुत मेधा शक्ति के धनी राजेंद्र प्रसाद जी ने संविधान निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाई।   बिहार के गौरव डॉ राजेंद्र प्रसाद जी के व्यक्तित्व से नयी पीढ़ी को सादगी एवं सरलता सीखनी चाहिए।  राष्ट्रनायकों की जयंती हमें उनके जीवन गाथा से बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान करती है।   गांधीजी को वास्तव में गांधी बनाने में चंपारण सत्याग्रह की बड़ी भूमिका रही और इसकी पृष्ठभूमि में राजेन्द्र प्रसाद की बड़ी भूमिका थी। आजादी के बाद का सर्वप्रथम भारतीय नागरिक जिनकी कॉपी पर अँग्रेज परीक्षक (एक्जामिनर) ने कोई नं. नहीं दिया सिर्फ लिखा Examinee is better than Examiner तब स्कूल एक्जामिशन बोर्ड बहुत विशाल था कि अब उसके टुकड़े में दो देश बन चुके हैं,बंगलादेश व म्यांमार। उस समय इन दो देशों के अतिरिक्त अब के पं.बंगाल,बिहार,उड़िसा,यू.पी.का मैट्रिक का एक ही बोर्ड था।  डा०राजेन्द्र प्रसाद इस परीक्षा में फर्स्ट क्लाश फर्स्ट आये थे। 












भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू महात्मा गांधी की निष्ठा, समर्पण और साहस से काफी  प्रभावित थे।  स्वदेशी आंदोलन के अगुआ रहे राजेन्द्र बाबु वर्ष 1928 में कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर का पदत्याग कर दिए।  गांधीजी द्वारा जब विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार का  अपील किया गया तो उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अपने पुत्र मृत्युंजय प्रसाद, जो एक अत्यंत मेधावी छात्र थे, को कोलकाता विश्वविद्यालय से हटाकर बिहार विद्यापीठ में उनका नामांकन करवाया था। वे कहते थे- जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। -देशरत्न डाॅ राजेन्द्र प्रसाद

भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के प्रमुख क्रांतिकारी एवं भारतीय संविधान के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले भारत के प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 140वीं जयंती के अवसर पर शत शत नमन🙏

-डॉ साकेत सहाय

#साकेत_विचार

सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...