Saturday, April 29, 2023

सीता नवमी






जीवन का पाथेय यदि भगवान श्रीराम हैं तो उन तक पहुँचने का मार्ग केवल माता सीता हैं।  वह श्रीराम की लीला सहचरी हैं।  माता के चरणों की वन्दना करते हुए मानस में कहा गया है -

सती सिरोमनि सिय गुनगाथा।  

सोइ गुन अमल अनुपम गाथा।। 

सीता जी के कर्म और धर्म के संतुलन में समन्वय और सहयोग के कारण ही श्रीराम ने जीवन में नायक की मर्यादा स्थापित की। 

प्रभु श्रीराम सदैव ही विश्वास करने योग्य हैं। वह मर्यादा के प्रतिमान है इसलिए भगवान है।  जबकि माता स्वतंत्र हैं विदेह सुता हैं।  इसलिए वह भगवती हैं।

सीता नवमी के दिन जनकनन्दिनी माँ जानकी का प्राकट्य हुआ था। भूमिजा वैदेही माँ सीता के प्राकट्य महोत्सव की हार्दिक मंगलकामना!🙏


#सियाराम

—डॉ साकेत सहाय

Tuesday, April 25, 2023

हिंदी के अप्रतिम यौद्धा-चन्द्रबलि पाण्डेय


आज फ़ारसी, अरबी तथा प्राकृत भाषाओं के ज्ञाता हिंदी के अनथक यौद्धा चन्द्रबली पाण्डेय की  जयंती है।  उनके सम्बन्ध में प्रसिद्ध भाषा शास्त्री डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी कहते हैं -“पाण्डेय जी के एक-एक पैंफलेट भी डॉक्टरेट के लिए पर्याप्त हैं।" 

आजीवन अविवाहित रहे चन्द्रबली जी हिन्दी के अप्रतिम साहित्यकार माने जाते हैं।  आपके लिए हिंदी सेवा सर्वोपरि रही। अपनी व्यक्तिगत सुख-सुविधा के लिए आपने कभी चेष्टा नहीं की।  आपके द्वारा रचित छोटे-बड़े कुल ग्रन्थों की संख्या लगभग 34 कही जाती है। विश्वविद्यालय सेवा से दूर रहकर भी हिन्दी में शोध कार्य करने वालों में आपका प्रमुख स्थान है।

आपने हिंदी-विरोधियों से उस समय लोहा लिया, जब हिंदी का संघर्ष उर्दू और हिंदुस्तानी से था। आपके लिए हिंदी भाषा का प्रश्न राष्ट्रभाषा का प्रश्न था। भाषा विवाद ने इस प्रश्न को जटिल बनाकर उलझा दिया था। आपके शब्दों में उर्दू के बोलबाले का स्वरूप यों था- 'उर्दू का इतिहास मुँह खोलकर कहता है, हिंदी को उर्दू आती ही नहीं और उर्दू के लोग, उनकी कुछ न पूछिये। उर्दू के विषय में उन्होंने ऐसा जाल फैला रखा है कि बेचारी उर्दू को भी उसका पता नहीं। घर की बोली से लेकर राष्ट्र बोली तक जहाँ देखिये वहाँ उर्दू का नाम लिया जाता है।... उर्दू का कुछ भेद खुला तो हिंदुस्तानी सामने आयी।'

जब भाषा विवाद के चलते हिंदी पर बराबर प्रहार हो रहे थे। हिंदी के विकास में फ़ारसीनुमा उर्दू के हिमायतियों द्वारा तरह-तरह के अवरोध खड़े किये जा रहे थे, तब हिंदी की राह में पड़ने वाले अवरोधों को काटकर आपने हिंदी की उन्नति और हिंदी के विकास का मार्ग प्रशस्त किया । आपके प्रखर विचारों ने भाषा संबंधी उलझनों को दूर कर हिंदी क्षेत्र को नई स्फूर्ति दी। आपके गम्भीर चिंतन, प्रखर आलोचकीय दृष्टि और आचार्यत्व ने हिंदी और हिंदी साहित्य को अपने ही ढंग से समृद्ध किया।

पाण्डेजी ने अपने समय के हिन्दू-उर्दू विवाद पर तर्कसम्मत ढंग से अपने लेखों में निरन्तर लिखा। आपके प्रमुख लेख हैं: "उर्दू का रहस्य", "उर्दू की जुबान", "उर्दू की हकीकत क्या है", "एकता", "कचहरी की भाषा और लिपि", "कालिदास", "कुरआन में हिन्दी", "केशवदास", "तसव्वुफ अथवा सूफी मत", "तुलसी की जीवनभूमि", "नागरी का अभिशाप", "नागरी ही क्यों", "प्रच्छालन या प्रवंचना", "बिहार में हिन्दुस्तानी", "भाषा का प्रश्न", "मुगल बादशाहों की हिन्दी", "मौलाना अबुल कलाम की हिन्दुस्तानी", "राष्ट्रभाषा पर विचार-विमर्श", "शासन में नागरी", "शूद्रक साहित्य संदीपनी", "हिन्दी के हितैषी क्या करें", "हिन्दी की हिमायत क्यों", "हिन्दी-गद्य का निर्माण", "हिन्दुस्तानी से सावधान" आदि। 

आपका जन्म 25 अप्रैल, 1904 को उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ के 'साठियाँव' गाँव में हुआ था और निधन 24 जनवरी, 1958 को हुआ। आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधि ग्रहण करने के बाद सूफी साहित्य और दर्शन का गहन अध्ययन किया। 

पाण्डेय जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व हिंदी के प्रति समर्पित रहा। आपके लेखों से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि आपको राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति कितना प्रेम था । वे किसी भी स्थिति में हिन्दी को अप्रतिष्ठित नहीं देख सकते थे । पाण्डेयजी के अमूल्य प्रदेय से बहुत कम लोग परिचित हैं, परन्तु उन्होंने जो भी कुछ किया, वह हिन्दी के लिए ही किया ।

-आलेख-साकेत सहाय


सामग्री स्रोत- विकिपीडिया

#हिंदी #राष्ट्रभाषा #भाषा

#चन्द्रबलि_पाण्डेय

#साकेत_विचार

Sunday, April 16, 2023

राजनीति और मीडिया के माध्यम से जातिगत विभाजन

एक अपील

राजनीति और मीडिया के माध्यम से जातिगत विभाजन दूर हो

जाति और धर्म के क़हर से आज पूरा भारतीय उप महाद्वीप ही पीड़ित है। धर्म और भाषा के नाम पर अलग हुए पाकिस्तान और बांग्लादेश भी जाति और धर्म की पीड़ा से कहाँ मुक्त हुए?  दुर्भाग्य से वोट की राजनीति ने एक प्रकार से इसे सामाजिक महामारी का रूप दे दिया है। अब तो धर्मवाद के बाद जाति जनगणना के बहाने जातिवाद पर मुहर भी लगा दी गई है।  ताकि, पहले से लिखित रूप में धर्म, अल्पसंख्यक, अति पिछड़ा वर्ग, जाति, जनजाति, भाषा, बोली के नाम पर बँटा हुआ समाज और विभाजित दिखें और वोट की फ़सल कटती रहे।

देश के नागरिकों को इस तथ्य को समझना बेहद ज़रूरी है कि सामाजिक विभाजन औपनिवेशिक व्यवस्था का सबसे बड़ा हथियार था । परंतु आज़ादी के बाद वोट की राजनीति ने भी इस देश को विभाजित करने का सबसे बड़े हथियार के रूप में हिंदुओं को जाति, वर्ण भेद के आधार पर बांटने की व्यवस्थागत शुरुआत को और तूल दी। प्रारंभ में बौद्ध, जैन, सिक्ख से होकर हिंदुओं को दलित और ग़ैर दलित में राजनीतिक फसल के रूप काटने से हुई । फिर कार्ड खेला गया पिछड़ा, अति पिछड़ा तक । पर सब सामाजिक सुधार से अधिक वोट तन्त्र तक सीमित रहा ।  साथ ही, मुस्लिम, ईसाई भी, जिसमें ज्यादातर इसी मिट्टी से उपजे है उन्हें भी यहाँ की परंपरा, भाषा, जिसमें संस्कृति, संस्कार से काट दो। जबकि देश का एक विभाजन हो चुका है ।  पूर्व में अंग्रेजी एवं अंग्रेजों ने यही रणनीति अपनाई । आजादी के बाद भी उनकी साज़िश को हम अपनी नियति एवं मूढ़ता  की वजह से इतिहास का अंग मानकर स्वीकार कर रहे है। 

यह तय मानिये कि भारत तब तक एक रहेगा जब तक इसकी मूल संस्कृति जिंदा रहेगी। अफगानिस्तान, पाकिस्तान से भारतीयता समाप्त हो गई । अतः यह ज़रूरी है कि हम सब एक हो। हिंदुओं में व्यवस्थागत रूप से जातिगत विभाजन दूर हो। इस हेतु सामाजिक पहल हो। इसी माटी के मुस्लिम, ईसाईयों को भी यहाँ की परंपरा, संस्कृति से जोड़ने के प्रयास उसी प्रकार से हो, जैसे इनके पुरखों के समय होता था। और सबसे अधिक ज़रूरी है कि हिंदु मुस्लिम सिक्ख ईसाई से पहले हम सभी भारतीय बने।

मैंने जनवरी, 2022 में चुनाव आयोग, मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय तक को इस बात के लिए अनुरोध किया था कि मीडिया चैनलों द्वारा जातिगत वोटों के आँकड़े दिखाना ग़लत है।  मैं आप सभी से एक पत्र की प्रति साझा  कर रहा हूँ। 

सेवा में, 

मुख्य न्यायाधीश 

सर्वोच्च न्यायालय 

नई दिल्ली 

विषय - माननीय मुख्य न्यायाधीश  से चुनावी सर्वेक्षण या अन्य मदों में मीडिया माध्यमों तथा राजनीतिक दलों द्वारा सनातन समाज  को विभाजित किए जाने पर तत्काल रोक हेतु अनुरोध पत्र 

आदरणीय महोदय/महोदया, 

विषयगत संबंध में सादर अनुरोध है कि चुनाव आयोग द्वारा  पांच राज्यों में निर्वाचन प्रक्रिया की शुरुआत की जा चुकी है ।  इसी के साथ चुनावी सर्वेक्षणों की शुरूआत भी हो चली है। खेद की बात यह है कि इसमें अधिकांश मीडिया संगठनों, पत्रकारों द्वारा भारतीय समाज को विशेष रूप से हिंदू समाज को जातिगत भेदभाव के आधार पर बांटा जाता है। यह भारतीय संविधान का अपमान है। 

महोदय, मीडिया चैनलों, राजनीतिक दलों एवं अन्य संगठनों के इस कृत्य से सामाजिक विभाजन को बल मिलता है। साथ ही इस कुप्रयास से सामाजिक कोढ़ के रूप में कुख्यात जातिगत विभाजन का भी प्रसार होता है। इससे संविधान के उद्देशिका के बोध वाक्य 'हम भारत के लोग' को भी हानि पहुंचती है।  

महोदय, चुनाव लोकतांत्रिक परंपरा का समृद्ध हिस्सा है। इसमें दलित, ओबीसी, अगड़ों के आधार पर चुनावी मतों का निर्धारण किया जाना किसी भी सभ्य समाज द्वारा उचित नहीं ठहराया जा सकता ।  चुनाव में जनता पार्टियों या विचारधारा के आधार पर  वोट डालती है। पर,  मीडिया माध्यमों, राजनीतिक दलों द्वारा नेताओं के टिकट को जाति या धर्मं से तौलकर प्रसारित करना किसी अस्वस्थ परंपरा के प्रसार का भाग लगता है।  जो कि सरासर निंदनीय है। इसे हम भारतीयता का अपमान भी मान सकते है। 

मीडिया जिसे चौथा खंभा माना जाता है वह इस खेल में सबसे आगे शामिल हैं।  चुनावी आधार पर हिंदू या किसी भी संप्रदाय को विभाजित करना धर्मनिरपेक्ष परंपरा के भी  विरूद्ध है।  यह सब अधिकांश चुनावों में देखा जाता है।  महोदय,  भारत में चुनाव सर्व भारतीय समाज के आधार पर होना चाहिए । न कि दलित, पिछड़ा, ओबीसी, अगड़ी जाति के आधार पर होना चाहिए । भारतीयता की पहचान है -सभी का समावेश ।

महोदय, से विनम्र अनुरोध है कि भारतीयता के मूल प्रसार में यह आवश्यक है इस प्रकार के रिपोर्टों पर माननीय न्यायालय  तुरंत संज्ञान लें और तत्काल प्रभाव से इस पर रोक लगाएं।

भवदीय ,


डॉ साकेत सहाय 

लेखक एवं शिक्षाविद् 

संपर्क- hindisewi@gmail.com 

प्रतिलिपि- माननीय मुख्य चुनाव आयुक्त, नयी दिल्ली को प्रेषित 

©डॉ साकेत सहाय

#साकेत_विचार

#धर्म #भाषा #राजनीति #मीडिया

Monday, April 10, 2023

कविता- इतिहास

 भारत में इतिहास लेखन पर मेरी एक कविता जिसे मैंने चार वर्ष पूर्व लिखा था, आप सभी से पुन: साझा कर रहा हूँ-

                                          

इतिहास ..........


इतिहास

भारत की जहालत का

बदनामी का

संपन्नता का

विपन्नता का

................................ 

कौन-सा

कुभाषा का

कुविचारों का

या अपने को हीन मानने का

..............................


सौहार्दता की आड़ में

अपने को खोने का

विश्व नागरिक की चाह में

भारतीयता को खोने का


....................................


समरसता की आड़ में अपने को खोने का

इतिहास है क्या

सिकंदर को महान बनाने का

या

समुद्रगुप्त से ज्यादा नेपोलियन को

या

फिर स्वंय को खोकर

दूसरों को पाने का

या 

दूसरों को रौंदकर अपनी पताका फहराने का


...............................

आधुनिकता की आड़ में 

पुरातनता थोपने का ।

समाज सुधार आंदोलनों को 

धार्मिक आंदोलन का नाम देने का  

या

कौमियत को धर्म का नाम देने का 


.............................


क्या धर्म को विचार का नाम देना आंदोलन है 

या फिर 

अंग्रेजी दासता को श्रेष्ठता का नाम देना 

या फिर सूफीवाद की आड़ में

भक्तिवाद को खोने का


..........................

या फिर

इतिहास है अतीत के पन्नों पर

खुद की इबारत जबरदस्ती लिखने का

या शक्तिशाली के वर्चस्व को स्थापित करने का  


........................


कहते है भारत सदियों से एक है 

तो फिर जाति-धर्म के नाम पर 

रोटी सेंकना क्या इतिहास है। 

क्या देश की सांस्कृतिक पहचान नष्ट करना 

इतिहास है?

...................


यदि यह इतिहास है ?

तो जरूरत है इसे जानने-समझने की

इतिहास है तटस्थता का नाम

तो फिर यह एकरूपता क्यूँ

क्या इतिहास दूसरों के रंगों में रंगने का नाम है

या दूसरों की सत्ता स्थापित करने का ।

©डॉ. साकेत सहाय

Thursday, April 6, 2023

हिंदी प्रयोग के नाम पर राजनीति




यह स्थापित सत्य है कि इस देश में सबसे ज्यादा बोली एवं समझी जाने वाली भाषा हिंदी है।  अतः देशहित में भाषा के नाम पर सोशल मीडिया या राजनीतिक मंचों के माध्यम से स्वार्थपरक धारणाएं स्थापित की जानी तुरंत बंद की जानी चाहिए।। क्या दही के पैकेट पर दही शब्द प्रिंट करके व्यवस्था ने कोई गुनाह किया था?  

वैसे व्यवहारिकता तो यही है कि इस देश में हर चीज पर राज्य विशेष की भाषा तथा हिंदी में ग्राहक सूचनायें प्रिंट होनी चाहिये। परंतु यह दुर्भाग्य है कि इस देश में कि हर चीज में राजनीतिक एजेंडा के तहत भाषा, जाति और पंथ को घसीटा जाता है। कब तक यह देश संघ की राजभाषा हिंदी का अपमान करेगा?

  1. कभी भाषा को पंथ से जोड़कर कुतर्क प्रस्तुत करेंगे।  
  2. कभी हिंदी-उर्दू का विवाद,
  3. कभी हिंदी की बोलियों के नाम पर राजनीतिक रोटी सेंकना 
  4. तो कभी हिंदी और भारतीय भाषाओं को आपस में लड़ा कर अंग्रेजी को आगे करना। 

जबकि  भाषाएं तो राष्ट्रीय संस्कृति से जुड़ी होती हैं, राष्ट्रीय संस्कृति की परिचायक होती हैं। अब हिंदी-उर्दू को ही लें।  उर्दू और हिंदी दोनों हमारी अपनी  भाषाएं है।  मात्र लिपि का अंतर है। इतिहास  पढ़ लीजिये, जान-बूझकर षड्यंत्र के तहत उर्दू को फारसी लिपि में लिखा जाने लगा।  यदि देश पर तुर्क-मुगल-अंग्रेजों द्वारा दासता नहीं थोपी जाती तो क्या यहाँ अंग्रेजी भाषा या फारसी लिपि वाली उर्दू  चलती? इस देश की सांस्कृतिक एकता के लिये जरूरी है कि इस देश की परंपरा, भाषा, लिपि, संस्कृति का सम्मान हों, उसे बढ़ावा देने का यत्न हो। 

अतः दही विवाद पर तमिलनाडु सरकार को यह समझना चाहिए यह देश समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, परंपरा का देश रहा है।   इस देश में सदियों से एक भाषा को राष्ट्रीय-सांस्कृतिक रूप से अपनाने की परंपरा रही है। भारत एक संघीय गणराज्य है तो यह सभी राज्यों का राष्ट्रीय धर्म है कि वे संघ की राजभाषा हिंदी का सम्मान करें, न कि निहित स्वार्थ में देश का नुक़सान करें और राष्ट्रीय भावना को क्षति न पहुँचाए। 

देश अब ब्रिटिश, मुगल या अरबों  का उपनिवेश नहीं रहा।  जो आप उनकी भाषा, संस्कृति, परंपरा को हर जगह अपनायेंगे।  यह सब हीनता बोध का परिचायक है। हम सभी का यह राष्ट्रीय धर्म है कि हम अपनी भाषाओं का सम्मान करें, उसे सीखें, समझें, अपनाएँ, अपनी राष्ट्रभाषा, राजभाषा का अपमान करना राष्ट्रीय शर्म का विषय होना चाहिए। 

साथ ही यह जरूरी है कि हम सभी अपने-अपने स्तर पर भाषा के विमर्श को सकारात्मक तरीके से उठायें। उदाहरण के लिए, जब तक सभी कंपनियां अपने उत्पादों पर राजभाषा और प्रदेश विशेष की भाषा का प्रयोग नहीं करें, उन्हें न खरीदें ।  आजादी के अमृत काल में संविधान के रक्षार्थ हम सभी इतना तो कर ही सकते हैं।  

केवल सरकारों के भरोसे रहने से हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं  का भला कभी नहीं होगा। सरकार और समाज दोनों को हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के प्रयोग-प्रसार हेतु उल्लेखनीय प्रयास करना होगा। सरकार इस दिशा में लगातार प्रयासरत हैं । कार्यालयों में हिंदी के प्रयोग-प्रसार में उनके प्रयासों से कितना लाभ हुआ इसकी समीक्षा अलग से हो सकती है। पर यह भी तथ्य है कि हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के समक्ष बाधाएं भी कम नहीं,  आज स्वाधीनता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी  शासन-प्रशासन, न्यायपालिका सहित विपक्ष  भी हिंदी और भारतीय भाषाओं के पक्ष में कभी एकमत से खड़ा नहीं दिखता। 

इस प्रकार के प्रकरणों पर राजनीतिक के साथ-साथ सामाजिक रुप से भी यह कहा जा सकता है कि हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के प्रति हमारी सोच बेहद सीमित है । ज्यादातर इसे सिर्फ बोलने का जरिया भर मानते है।  इसे हम अपनी सांस्कृतिक व सामाजिक दोनों ही स्तरों पर गिरावट मान सकते है।  क्योंकि भाषा के सबसे महत्वपूर्ण पक्ष संस्कृति, संस्कार,  भाव, परंपरा के जनक के रूप में देखने में हम में से ज़्यादातर असमर्थ है।   जिसकी शुरुआत ज़्यादा तीव्र गति से  उदारीकरण के बाद प्रारंभ  हुईं है। अब अधिकांश महानगरीय सोच से प्रभावित पीढ़ी के लिए यह केवल बोली के रुप में उपस्थित भर रह गई है। सरकारें सब कुछ नहीं कर सकती। जरूरी है कि हम अपने घरों से इसकी शुरुआत करें । हिंदी के सर्व समावेशी रूप तथा देवनागरी लिपि एवं अन्य भारतीय भाषाओं के समन्वय से इसकी शुरुआत हो। हमारी भाषाओं में सब कुछ है। पर हम सभी को इस हेतु पहल करनी होगी।  पहल करना सबसे अधिक जरूरी है। आज कोई भी परीक्षा हो हर जगह अंग्रेजी हावी है, जिससे हिंदी एवं देशी भाषाएँ वाले कमजोर हीनता बोध से प्रभावित नज़र आते है। संस्थानो में राजभाषा की स्थिति को देख लें । हम खुद समझ जाएंगें । 

अब समय आ गया है हिंदी एवं देशी भाषाओं की मजबूती के लिए हम सभी को गहरी नींद से  जागना होगा, लड़ना होगा । भाषाएं केवल नीतियों से नही उभरती, भाषाएं स्वस्थ मानसिकता एवं मजबूत सोच से आगे बढती है।

ऐसे में हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि सरकार के सकारात्मक प्रयासों को हर स्तर पर अपना अधिकतम समर्थन दें और उनके प्रयास में अपना भी योगदान दें। सोचियेगा कभी, क्या हमारे महान नेताओं ने स्वभाषा के लिए इन्हीं दिनों की ख़ातिर अपना बलिदान दिया था।

©डॉ. साकेत सहाय

#दही

#हिंदी 

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हनुमान जयंती

 


आज हनुमान जयंती है। हनुमानजी सर्वप्रिय देवता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अनन्य भक्त के रूप में आप सर्व पूजनीय है। आज ही के दिन माता अंजनी की गोद में बजरंग बली बालरूप में प्रकट हुए थे। यह अद्भुत संयोग है कि चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी पर प्रभु श्रीराम जन्मे और उनके अनन्य भक्त पूर्णिमा की तिथि को।  राम भक्त हनुमान जी निर्भयता, विश्वास के देवता हैं। यह उनका स्वयं एवं प्रभु के ऊपर विश्वास ही था जो पृथ्वी की जीवन धारा के प्रतीक सूर्य को मुंह में रख लेने से लेकर समुद्र लांघने, ताड़का वध तक के काम उनसे करवा देता है।

डर के आगे जीत है। डर को जीतने की कला में वे निपुण हैं। हनुमान जी से यह सीखा जा सकता है कि जिसने भी उनके मन में भय पैदा करने की कोशिश की, लेकिन वे अपनी बुद्धि और शक्ति के बल पर उनको हरा कर आगे बढ़ गए। डर को जीतने का पहला प्रबन्धन सूत्र हनुमान जी से सीखा जा सकता है कि अगर आप विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ना चाहते हैं तो बल और बुद्धि दोनों से काम लेना आना चाहिए। जहां बुद्धि से काम चल जाए वहां बल का उपयोग नहीं करना चाहिए। 

रामचरित मानस के सुंदरकांड का प्रसंग है सीता की खोज में समुद्र लांघ रहे हनुमान जी को बीच रास्ते में सुरसा नाम की राक्षसी ने रोक लिया और हनुमान जी को खाने की जिद करने लगी। हनुमान ने उसे बहुत मनाया, लेकिन वह नहीं मानी। वचन भी दे दिया, राम काज करके आने दो, माता सीता का संदेश उनको सुना दूं फिर खुद ही आकर आपका आहार बन जाऊंगा। सुरसा फिर भी नहीं मानी। वो हनुमान जी को खाने के लिए अपना मुंह बड़ा करती, हनुमान जी उससे भी बड़े हो जाते। वो खाने की जिद पर अड़ी रही, लेकिन हनुमान जी पर कोई आक्रमण नहीं किया। यह बात हनुमान जी ने समझ ली कि मामला मुझे खाने का नहीं है, सिर्फ आत्म बल के जाँच की बात है। समय के अनुरूप हनुमान जी ने तत्काल सुरसा के बड़े स्वरूप के आगे अपने को बहुत छोटा कर लिया। उसके मुंह में से घूमकर निकल आए। सुरसा खुश हो गई। आशीर्वाद दिया और लंका के लिए जाने दिया।

जहां विषय अहंकार के शमन का हो, संतुष्टि का हो, वहां बल नहीं, बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए, ये हनुमान जी ने ही सिखाया है। बड़े लक्ष्य को पाने के लिए अगर कहीं झुकना भी पड़े, झुक जाइए।  राम भक्त हनुमान शैव और वैष्णव धाराओं के मध्य समर्पण, विश्वास, प्रेम, करुणा, त्याग के अनन्य रूप हैं। उन्हें भगवान शिव का ग्यारहवां अवतार रूद्र कहा जाता हैं जो भगवान राम के अनन्य भक्त हैं। यह भक्त बल का अद्भुत प्रताप है कि बिना हनुमान जी की पूजा के भगवान श्रीराम की पूजा पूर्ण नहीं होती।  उनका तेज एवं बल प्रभु श्रीराम के समान है। वे भक्त की मर्यादा के अनुरूप प्रभु के यश-कीर्ति में श्रीवृद्धि करते हैं। माता सीता ने उन्हें अपना पुत्र माना था। भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के समय पूर्ण समृद्धि एवं एकता के लिए हनुमान जी  चार समुद्र और 500 नदियों  से जल लेकर आए थे। इसे उनकी असाधारण शक्ति एवं समर्पण का प्रतीक मान सकते हैं। 

हनुमान जी बुद्धि, विवेक, धैर्य और विनम्रता के देवता हैं। ‘भूत, पिशाच निकट नही आवै’ पाठ के द्वारा हम सभी उन्हें नित स्मरण करते है। सुंदरकांड में हनुमान जी का संदेश है कि कभी-कभी किसी के सामने छोटा बनकर भी उसे पराजित किया जा सकता है। शत्रु बड़ा हो तो उससे डरे नहीं, बुद्धिमानी का उपयोग करें और आत्मविश्वास बनाए रखें। लक्ष्य बड़ा हो तो हमें विश्राम करने में या किसी से युद्ध करने में समय नष्ट नहीं करना चाहिए।

भारत से जब एक विमान में 30 लाख कोविड-१९ टीके की खुराक ब्राजील पहुंचा तब ब्राजील के राष्ट्रपति ने हनुमान जी की संजीवनी बूटी लाते हुये तस्वीर का फोटो ट्वीट करते हुए धन्यवाद भारत लिखा था। आप सभी को इस मंगल दिवस की बधाई!  विशेष आप सभी इसे विस्तार से मेरे ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं।

 बजरंग बली 🙏

आप सभी को इस मंगल दिवस की बधाई!

सादर, 

डॉ साकेत सहाय

२३.०४.२०२४

#हनुमान_जयंती

#बजरंग_बली

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जय बजरंग बली 🙏

Monday, April 3, 2023

महावीर जयंती

 


आप सभी को महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामना! 

बिहार की धरा पर अवतरित होकर संपूर्ण धरा को अपने जीवन और विचार से प्रेरित करने वाले भगवान महावीर स्वामी को शत शत नमन! 

जैन पंथ के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने सत्य, अहिंसा, त्याग, संयम और अपरिग्रह का संदेश पूरे विश्व को दिया। 

विश्व को ‘अहिंसा परमो धर्म: ‘ का पाठ पढ़ाने वाले महावीर स्वामी का संदेश आज भी मानवता के लिए प्रकाश स्तंभ है। 

आइए, उन्माद, हिंसा, युद्ध, के अमानवीय पथ का शमन करते हुए अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकले। साथ ही उनके सबसे बड़े संदेश शाकाहार को जीवन में अपनाए। 

सादर, 

डॉ साकेत सहाय

०४.०४.२०२३

#महावीर_जयंती

#भगवान_महावीर

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सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...