एक और हिन्दी दिवस

एक और हिन्दी दिवस !


एक और हिन्दी दिवस ! आजादी के इतने वर्षो बाद भी राष्ट्रभाषा के लिए अगर कोई दिवस मनाने की जरुरत पड़ती है तो यह इस हम सभी के लिए शर्म की बात है। कारण कि सरकार का काम है, नियम-कानून जारी करना तथा उन कानूनों को लागू करने के लिए विशेष दिशा-निर्देशों जारी करना। लेकिन उन नियमों के अनुपालन की जिम्मेवारी सरकारी सेवकों के साथ-साथ जनता की भी तो है। हम यह भली-भांति जानते है कि हम राष्ट्रभाषा के प्रति कितने लापरवाह है। लेकिन जब भाषण देने की बारी आती है तो हम अपने अंदर न झाँक संविधान और सरकार को दोष देते है। समलैंगिकता जैसे विषयों पर तो हम रैलियां निकाल लेते है लेकिन राष्ट्रीय स्वाभिमान के विषय पर हममें से कितने सरकार से लड़ने या सर्वोच्च न्यायालय जाने की हिम्मत रखते है।

वर्ष 1950 से हमने न जाने कितने हिन्दी दिवस मना लिए। संविधान सभा ने एक स्वस्थ सोच के तहत हिन्दी को राजभाषा की मान्यता दी थी । लेकिन गलती तो हम नागरिकों की है जो प्रयोग नही करते । अगर हम प्रयोग ही नही करेंगें तो हिन्दी अपनी वास्तविक स्थिति की उत्तराधिकारणी कैसे होगी। यहाँ प्रयोग से मेरा तात्पर्य है ज्ञान-विज्ञान की भाषा बनने से। कोई बता सकता है कि आई. आई. टी के कितने विद्वानों ने अपनी हिन्दी में तकनीक की किताब लिखने की चेष्टा की है।
भारत की विधायिका सभा में एक विधेयक पारित कर हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा स्वीकार किया गया था। उस समय तत्कालीन विधि मंत्री भारत रत्न भीमराव अंबेडकर ने स्पष्ट कहा था, ‘’ आज जब संपूर्ण भारत के लोगों ने एक राष्ट्र के रुप में रहने का संकल्प लिया है, हमारे लिए एक सामान्य संस्कृति का विकास करना बहुत जरुरी है। अत: हर भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह हिन्दी को अपनाए ।”

संविधान ने हिन्दी के महत्व को देखते हुए राजभाषा दर्जा प्रदान किया था। जिसके पीछे कई कारण थे। लेकिन साधारण शब्दों में प्रमुख कारण रहा स्वाधीनता आंदोलन में इसकी व्यापक भूमिका। आजादी के पूर्व चूँकि राज-काज की भाषा अंग्रेजी थी। अत: संविधान निर्माताओं को सरकारी काम-काज तथा देश की राजनैतिक एकता के लिए एक ऐसी भाषा की जरुरत महसूस हुई जिसकी पूरे देश में व्यापक स्वीकृति हो। और, हिन्दी उस समय सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा थी । अत: देश की संसद ने हिन्दी की व्यापक लोकप्रियता को देखते हुए सर्वसम्मति से देश की राजभाषा बनाया।

सरकारी कार्यालयों में तो हिन्दी थोड़ी-बहुत लागू भी हो गई । लेकिन आम जनता जिनके पास थोड़ा भी पैसा है वो अंग्रेजी की पूजा आज भी करते है। हममें से कितने अपने बच्चों को अपनी संस्कारों की भाषा सिखाने पर जोर देते है। आज 100 में से 99 व्यक्ति अपने बच्चों के जन्मदिन पर Happy Birthday to you का गान कराते है। पैदा होते ही बच्चो को Twinkle –Twinkle little Star सिखाते है। आज जरुरत सरकार पर दोष देने से ज्यादा अपने अंदर झाँकने की है। महान शायर दुश्यंत कुमार की एक गजल है-

‘’आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ो नारे न देख, घर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख’’

यह हिन्दी पर अक्षरश: लागू होता है हमें जरुरत है अपने अंदर झाँकने की। वरना आने वाले समय में काफी विकट स्थिति पैदा हो जाएगी। हम सभी जानते है कि राष्ट्र मात्र एक भौगोलिक संकल्पना नही वरन सांस्कृतिक संकल्पना भी है। और, इसमें भाषायें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भाषायें सांस्कृतिक एकता की वाहक होती है।

आज हम सभी अपने भारत में दो विभाजन की बात करते है एक भारत दूसरा इंडिया। लेकिन अगर हम चेते नही तों आने वाले समय में हम अपने बच्चों में भी दो भारत देखेंगे। एक इंडिया यानि अंग्रेजी में पला-बढ़ा तथा दूसरा हिन्दी यानि भारतीय परिवेश में पला-बढ़ा। आने वाले समय में इस सांस्कृतिक विभाजन की आसानी से कल्पना की जा सकती है।

धन्यवाद !!!
विशेष आपके सुझावों का इंतजार रहेगा।

Comments

Anonymous said…
u have rightly assessed situations
alka mishra said…
badi purani post hai bhaii ,kuchh nayaa nahin likha kya

Popular posts from this blog

विज्ञापन, संस्कृति और बाज़ार

महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह को श्रद्धांजलि और सामाजिक अव्यवस्था

साहित्य का अर्थ