भारतीय मानक ब्यूरो (बी आई एस) में व्याख्यान
आज़ भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस), हैदराबाद में भाषा मंथन परिचर्चा के तहत विशिष्ट अतिथि के रूप में मुझे जाने का सुअवसर मिला। इस अवसर पर मैंने अपने संबोधन में कहा कि भाषाएँ केवल रोज़गार की वाहक नहीं होती बल्कि संस्कार एवं संस्कृति की प्रधानत: वाहक होती है । साथ ही, व्यवहार, संपर्क और राष्ट्रीयता की भी । हिंदी भारत की संपर्क, जुड़ाव और लगाव की भी आग्रही भाषा है। हाल के दशक में विशेष रूप से उदारीकरण के बाद भाषाओं को समाज, आडंबर और राजनीति ने गहरे तौर पर प्रभावित किया है । साथ ही हमारी भाषा और संस्कृति पर भी इसने गहरा असर डाला है। हम ग्लोबल बनने के चक्कर में अपने गाँव, घर, समाज से दूर होते जा रहे हैं।हम चरम नकलची लोग अपने अक़्ल को किसी और के सिरहाने छोड़ आए हैं । इससे हर कोने में अपसंसकृति व्याप्त है । हमारी भाषा और संस्कृति को इस प्रभाव ने मैली और प्रदूषित किया है। जब हमारी भाषाएँ प्रदूषित होंगी तो संस्कृति भी प्रदूषित होंगी ही । अत: हमें अपनी भाषाओं के प्रयोग और व्यवहार को बढ़ाना ही होगा और यह वृहत्तर भारतीय समाज की भी महती जिम्मेदारी है । सादर, डा. साकेत सहाय ...