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Showing posts from December, 2024

भारतीय मानक ब्यूरो (बी आई एस) में व्याख्यान

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आज़ भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस), हैदराबाद में भाषा मंथन परिचर्चा के तहत विशिष्ट अतिथि के रूप में मुझे जाने का सुअवसर मिला। इस अवसर पर मैंने अपने संबोधन में कहा कि भाषाएँ केवल रोज़गार की वाहक नहीं होती बल्कि संस्कार एवं संस्कृति की प्रधानत: वाहक होती  है । साथ ही, व्यवहार, संपर्क और राष्ट्रीयता की भी । हिंदी भारत की संपर्क, जुड़ाव और लगाव की भी आग्रही भाषा है। हाल के दशक में विशेष रूप से उदारीकरण के बाद भाषाओं को समाज, आडंबर और राजनीति ने गहरे तौर पर प्रभावित किया है ।  साथ ही हमारी भाषा और संस्कृति पर भी इसने गहरा असर डाला है। हम ग्लोबल बनने के चक्कर  में अपने गाँव, घर, समाज से दूर होते जा रहे हैं।हम चरम नकलची लोग अपने अक़्ल को किसी और के सिरहाने छोड़ आए हैं । इससे हर कोने में अपसंसकृति व्याप्त है । हमारी भाषा और संस्कृति को इस प्रभाव ने मैली और प्रदूषित किया है। जब हमारी भाषाएँ प्रदूषित होंगी तो संस्कृति भी प्रदूषित होंगी ही । अत: हमें अपनी भाषाओं के प्रयोग और व्यवहार को बढ़ाना ही होगा और यह वृहत्तर भारतीय समाज की भी महती जिम्मेदारी है ।  सादर, डा. साकेत सहाय  ...

रघुवीर सहाय साहित्यकार

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 आज आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि, लेखक, पत्रकार, संपादक, अनुवादक रघुवीर सहाय (1929-1990) की जयंती है।  आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त है।  आप पत्रकारिता और कहानियों के लिए प्रसिद्ध रहे। चर्चित पत्रिका ‘दिनमान’ के संपादक रहे।  इस अवसर पर ‘दूरदर्शन’ शीर्षक से उनकी एक प्रसिद्ध कविता - दूरदर्शन  -रघुवीर सहाय मैं संपन्न आदमी हूँ  है मेरे घर में टेलीविजन दिल्ली और बंबई दोनों के बतलाता है फ़ैशन कभी-कभी वह  लोकनर्तकों की तस्वीर दिखाता है पर यह नहीं बताता है उनसे मेरा क्या नाता है हर इतवार दिखाता है  वह बंबइया पैसे का खेल गुंडागर्दी औ' नामर्दी का  जिसमें होता है मेल कभी-कभी वह दिखला देता है  भूखा नंगा इंसान उसके ऊपर बजा दिया करता है  सारंगी की तान कल जब घर को लौट रहा था  देखा उलट गई है बस सोचा मेरा बच्चा  इसमें आता रहा न हो वापस टेलीविजन ने ख़बर सुनाई  पैंतीस घायल एक मरा ख़ाली बस दिखला दी ख़ाली  दिखा नहीं कोई चेहरा वह चेहरा जो जिया या मरा  व्याकुल जिसके लिए हिया उसके लिए समाचारों के बाद समय ही नहीं दिया।...