Thursday, December 19, 2024

भारतीय मानक ब्यूरो (बी आई एस) में व्याख्यान








आज़ भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस), हैदराबाद में भाषा मंथन परिचर्चा के तहत विशिष्ट अतिथि के रूप में मुझे जाने का सुअवसर मिला। इस अवसर पर मैंने अपने संबोधन में कहा कि भाषाएँ केवल रोज़गार की वाहक नहीं होती बल्कि संस्कार एवं संस्कृति की प्रधानत: वाहक होती  है । साथ ही, व्यवहार, संपर्क और राष्ट्रीयता की भी । हिंदी भारत की संपर्क, जुड़ाव और लगाव की भी आग्रही भाषा है। हाल के दशक में विशेष रूप से उदारीकरण के बाद भाषाओं को समाज, आडंबर और राजनीति ने गहरे तौर पर प्रभावित किया है ।  साथ ही हमारी भाषा और संस्कृति पर भी इसने गहरा असर डाला है। हम ग्लोबल बनने के चक्कर  में अपने गाँव, घर, समाज से दूर होते जा रहे हैं।हम चरम नकलची लोग अपने अक़्ल को किसी और के सिरहाने छोड़ आए हैं । इससे हर कोने में अपसंसकृति व्याप्त है । हमारी भाषा और संस्कृति को इस प्रभाव ने मैली और प्रदूषित किया है। जब हमारी भाषाएँ प्रदूषित होंगी तो संस्कृति भी प्रदूषित होंगी ही । अत: हमें अपनी भाषाओं के प्रयोग और व्यवहार को बढ़ाना ही होगा और यह वृहत्तर भारतीय समाज की भी महती जिम्मेदारी है । 

सादर,

डा. साकेत सहाय 

भाषा, संचार विशेषज्ञ 

#साकेत_विचार 

Monday, December 9, 2024

रघुवीर सहाय साहित्यकार



 आज आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि, लेखक, पत्रकार, संपादक, अनुवादक रघुवीर सहाय (1929-1990) की जयंती है।  आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त है।  आप पत्रकारिता और कहानियों के लिए प्रसिद्ध रहे। चर्चित पत्रिका ‘दिनमान’ के संपादक रहे। 


इस अवसर पर ‘दूरदर्शन’ शीर्षक से उनकी एक प्रसिद्ध कविता -


दूरदर्शन 

-रघुवीर सहाय


मैं संपन्न आदमी हूँ 

है मेरे घर में टेलीविजन

दिल्ली और बंबई दोनों के बतलाता है फ़ैशन


कभी-कभी वह 

लोकनर्तकों की तस्वीर दिखाता है

पर यह नहीं बताता है उनसे मेरा क्या नाता है


हर इतवार दिखाता है 

वह बंबइया पैसे का खेल

गुंडागर्दी औ' नामर्दी का 

जिसमें होता है मेल


कभी-कभी वह दिखला देता है 

भूखा नंगा इंसान

उसके ऊपर बजा दिया करता है 

सारंगी की तान


कल जब घर को लौट रहा था 

देखा उलट गई है बस

सोचा मेरा बच्चा 

इसमें आता रहा न हो वापस


टेलीविजन ने ख़बर सुनाई 

पैंतीस घायल एक मरा

ख़ाली बस दिखला दी ख़ाली 

दिखा नहीं कोई चेहरा


वह चेहरा जो जिया या मरा 

व्याकुल जिसके लिए हिया

उसके लिए समाचारों के बाद

समय ही नहीं दिया।


तब से मैंने समझ लिया है 

आकाशवाणी में बनठन

बैठे हैं जो ख़बरोंवाले 

वे सब हैं जन के दुश्मन


उनको शक था दिखला देते 

अगर कहीं छत्तिस इंसान

साधारण जन अपने-अपने 

लड़के को लेता पहचान


ऐसी दुर्भावना लिए है 

जन के प्रति जो टेलीविजन

नाम दूरदर्शन है 

उसका काम 

किंतु है दुर्दशन


स्रोत :पुस्तक : रघुवीर सहाय संचयिता (पृष्ठ 182) संपादक : कृष्ण कुमार  रचनाकार : रघुवीर सहाय प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन  संस्करण  : 2003


विनम्र श्रद्धार्पण !

#रघुवीर_सहाय 

#साकेत_विचार

सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...