Wednesday, February 21, 2024

आवाज के जादूगर -अमीन सयानी

अमीन सयानी नहीं रहे। 



आवाज की दुनिया के दोस्त बिना उनकी आवाज़ के अधूरे हैं।  शायद ही कोई रेडियो, सिनेमा प्रेमी  ऐसा होगा जो इस नाम से परिचित ना हों। उनकी कभी न भूलने वाली आवाज के बिना भारत का रेडियो जगत अधूरा है। कभी बिनाका, सीबाका का हर श्रोता ठीक आठ बजे रेडियो सिलोन में कान लगा कर सिर्फ गीतमाला नहीं सुनता था, साथ में उनकी अपनेपन से भरी आवाज को भी सुनता था। जब वे कहते, भाइयों और बहनों, तो ऐसा लगता था जैसे वे सीधे हमें संबोधित कर रहे हैं। उस एक कार्यक्रम ने रेडियो को जन-जन की आवाज़ बना दिया।  एक घंटे में सप्ताह के दस लोकप्रिय गीत मनोरंजन की सबसे बड़ी खुराक थी।  आवाज़ के जादूगर ने ९१ साल की भरपूर आयु जी, जिसमें से 42 साल तक सुपरहिट शो गीतमाला को होस्ट किया।  जब वे कहते "नमस्कार भाइयो और बहनो, मैं आपका दोस्त अमीन सयानी बोल रहा हूं।" तो श्रोता मंत्र-मुग्ध हो जाते।  अमीन सयानी ने 1952 से 1994 तक रेडियो शो गीतमाला को होस्ट किया। अमीन सयानी की वजह से इस रेडियो शो को देशभर में लोकप्रियता मिली।अमीन सयानी ने अपने करियर की शुरुआत आकाशवाणी सेवा से की थी। 21 दिसंबर 1932 को मुंबई में जन्मे अमीन एक बहुभाषी परिवार से संबद्ध रखते थे।  उन्होंने रेडियो प्रस्तुतकर्ता के रूप में  अपने करियर की शुरुआत की। 10 साल तक वे अंग्रेज़ी कार्यक्रम  का हिस्सा रहे। आजादी के बाद उन्होंने हिंदी की ओर रुख किया। सयानी को असली पहचान दिसंबर 1952 में शुरू हुए रेडियो शो गीतमाला से मिली। इस 30 मिनट के रेडियो शो के तीन नाम बदले गए, सब के सब लोकप्रिय रहे।  सयानी का शो बिनाका गीतमाला पहले रेडियो श्रीलंका पर प्रसारित होता था। आधे घंटे का यह कार्यक्रम बेहद चर्चित हुआ।   पहले बिनाका गीतमाला, फिर सिबाका गीतमाला हुआ और हिट परेड नाम से भी प्रसारित हुआ, लेकिन कभी भी इसकी लोकप्रियता कम नहीं हुई। इसके बाद गीतमाला कार्यक्रम आकाशवाणी और विविध भारती पर भी प्रसारित हुआ।

अमीन सयानी के अंदाज का हर कोई दीवाना था। गीतमाला शो रेडियो पर बुधवार रात 8 बजे प्रसारित होता था। परंतु आलम यह था कि हर कोई इस शो का इंतजार करता था। घर, दुकान, बाजार हर जगह लोग सयानी को सुनने के लिए आतुर  रहते थे। फिर गूंजती थी एक आवाज- बहनो और भाइयो, मैं आपका दोस्त अमीन सयानी बोल रहा हूं। और अब इस बरस बिनाका गीतमाला की वार्षिक हिट परेड का सरताज गीत।  इसके बाद बिगुल की आवाज गूंजती और फिर अमीन सयानी कहते, ‘फिल्म नाम का गाना है ये बहनो और भाइयो। इसे गाया है पंकज उधास ने।’

हिन्दी की लोकप्रियता का असर देखिये कि यह गीतमाला पूरे दक्षिण एशिया में लोकप्रिय हुई। इस अपूर्व सफलता के कारण गीतमाला शो 42 साल तक चला। बाद में, 2000-2001 और 2001-2003 में इसके नाम में मामूली बदलाव के साथ इसे फिर से शुरू किया गया।हिंदी इनसे भी लोकप्रिय हुई या यूँ कहें कि इन लोगों ने हिंदी की शक्ति को जाना-पहचाना।  

अब इस दुनिया से वह जोश भरी आवाज चली गई।  पर उनकी जादुई आवाज सदा गुंजेगी। 

डा. साकेत सहाय

भाषा-संचार विशेषज्ञ

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानितलेखक

hindisewi@gmail.com 

Tuesday, February 20, 2024

अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस





म ‘हज़ार मीलों का सफर एक कदम से आरंभ होता है।’  आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की हार्दिक शुभकामना! स्वभाषा हो सर्वोपरि!  इस अवसर पर आज ( 21.02.2024 ) के अमृत विचार के सभी संस्करणों में प्रकाशित आलेख “राष्ट्र निर्माण में मातृभाषा की भूमिका”

#मातृभाषा #राष्ट्रभाषा

#साकेत_विचार

Sunday, February 18, 2024

ओरियंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स(ओबीसी) स्थापना दिवस

 सुनहरी यादें ❤️

ओरियन्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स  स्थापना दिवस के अवसर पर सुनहरी यादों की हार्दिक बधाई! संगठन भले समय के साथ समाहित हो जाए परंतु उसके द्वारा निर्मित संस्कार एवं संस्कृति सदैव आपके भीतर जीवंत बने रहेंगे। 🙏🌺

एक बार फिर से वहीं पोस्ट जिसे वर्ष २०२० में मैंने लिखा था, आशा है यह पोस्ट आप सभी को पुन: यादों के संजाल में ले जाएगा। 


‘ओरियन्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स’ (१९४३-२०२०)

आज बैंक का एक और स्थापना दिवस है।भले ही यह संगठन अब इतिहास हो गया । पर इसके द्वारा निर्मित संस्कार अभी भी जिंदा है । कुछ चीजें हमारे-आपके वश में कभी नहीं रहती। नियति ही सब कुछ तय करती है। पर एक मानवीय स्वभाव है -लगाव होना।  यहीं लगाव हमें प्रकृति से, अपनों से जोड़ती है। प्रकृति से जुड़ाव ही  संसार को सशक्त बनाता है, जिससे व्यक्ति, समाज व संगठन का निर्माण होता है।  संगठन भी तो परिवार की ही भांति होते हैं, जिससे बिछुड़ने की टीस हम सभी में ताउम्र बनी रहती है। यहीं कारण है कि हम सब चाहकर भी ओबीसी के हरे बोर्ड और इसकी  प्यारी धुन ‘where every individual committed ‘ से मोह नहीं हटा पाते। यह प्यार, लगाव अब कहाँ मिलेगा,  एक परिवार की तरह अपनापन, सब लोग आपस में मिले हुए, जुड़े हुए ।   पर विछोह जहाँ एक पीड़ा, वहीं एक प्रक्रिया भी है। अब बैंक नहीं रहा, ना कभी दुबारा खुलेगा, क्योंकि सरकार ने इसे समामेलित कर दिया ।  पर इसकी बेहतर कार्य-संस्कृति हम सभी के रूप में सदैव विद्यमान रहेगी ।  

इस दुनिया में बहुत कुछ बदल जाता है, पर कुछ चीजें जो नहीं बदलती वह हमारे-आपके भीतर अन्तर्निहित है। वैसे भी संस्थान, मात्र संस्थान की ही निमित्त नहीं होते। संस्थान तो संस्कार का निर्माण करते है जिससे एक बेहतर कार्य-संस्कृति पुष्पपित-पल्लवित होती है।  ओ बी सी ने हम सभी के भीतर एक सशक्त संस्कृति का बीजारोपण किया है। जो हमें हर परिस्थिति से पार पाना सिखाती है। संस्थान भले किसी में आमेलित, मर्ज़ हो जाए, पर यह संस्कृति हमारे भीतर, आपके भीतर सदैव जिंदा रहेगी।  बतौर कर्मचारी मेरे लिए ओबीसी एक ऐसे संस्थान के रुप में बना रहेगा , जिस पर हमें गर्व है।  मुझे सदैव गर्व  रहेगा इस संस्थान से जुड़ने का। 

चीजें कभी एक जैसी नहीं रहतीं, बदलती रहती है । हमें भी लगातार आगे बढ़ना है।  पर एक अफसोस सदैव बना रहेगा कि एक जीवंत संगठन ख़त्म हो गया, पर इसके सशक्त संस्कार हम सभी के रुप में सदा जीवंत बने रहेंगे। 

पुन: आप सभी को ओरियन्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स  के स्थापना दिवस की यादों की बधाई! 🙏🌺

©डा. साकेत सहाय

लेखक

१९.०२.२०२५


Saturday, February 17, 2024

शहीद बुधु भगत

 


आज प्रसिद्ध क्रांतिकारी शहीद बुधु(बुदु) भगत जी की जयंती है ।  आप अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हुए । आपका जन्म वर्तमान राँची, झारखण्ड में हुआ था।  आमतौर पर 1857 को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम आंदोलन माना जाता है। लेकिन इससे पहले  ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया, बल्कि अपने अदम्य साहस व नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में "लरका विद्रोह" नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया।छोटानागपुर में अंग्रेज़ हुकूमत के दौरान बर्बरता चरम पर थी। बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेज़ी सेना की क्रूरता को देखते आये थे। किस प्रकार से उनके तैयार फ़सल ज़मींदार जबरदस्ती उठा ले जाते थे। ग़रीब गांव वालों के घर में कई-कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था। बालक बुधु भगत सिलागाई की कोयल नदी के किनारे घंटों बैठकर अंग्रेज़ों और जमींदारों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे। बुधु भगत ने अपने दस्ते को गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था। उन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने एक हज़ार रुपये इनाम की घोषणा की थी। 13 फ़रवरी, सन 1832 ई. को बुधु और उनके साथियों को कैप्टन इंपे ने सिलागांई गांव में घेर लिया। बुधु आत्म समर्पण करना चाहते थे, जिससे अंग्रेज़ों की ओर से हो रही अंधाधुंध गोलीबारी में निर्दोष ग्रामीण न मारे जाएँ। लेकिन बुधु के भक्तों ने वृताकर घेरा बनाकर उन्हें घेर लिया। चेतावनी के बाद कैप्टन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। अंधाधुंध गोलियाँ चलने लगीं। बूढ़े, बच्चों, महिलाओं और युवाओं के भीषण चीत्कार से पूरा इलाका कांप उठा। उस खूनी तांडव में करीब 300 ग्रामीण मारे गए। अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर जबरन खामोश कर दिया गया। बुधु भगत तथा उनके बेटे 'हलधर' और 'गिरधर' भी अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।

शहीद बुधु भगत जी के देश के प्रति त्याग व समर्पण को शत शत नमन🙏

#आज़ादी #देश #स्वाधीनता #बुधु_भगत

#साकेत_विचार

सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...