"महात्मा गांधी जी की राष्ट्रभाषा की परिकल्पना"

"महात्मा गांधी जी की राष्ट्रभाषा की परिकल्पना" स्वभाषा के प्रयोग और व्यवहार से समाज सशक्त बनता है । राष्ट्रभाषा हिंदी को प्रयोग और व्यवहार में लाकर महात्मा गाँधी ने हिंदी की महत्ता को सशक्तता प्रदान की। एक बार काका कालेलकर ने गांधीजी से पूछा कि विष्णु शास्त्री चिपलूणकर महाराष्ट्र के महान् देशभक्त और मराठी के सुप्रसिद्ध लेखक तथा संपादक होते हुए भी अंग्रेज़ी के कट्टर समर्थक क्यों थे और अंग्रेज़ी को शेरनी का दूध क्यों कहा करते थे । हाज़िरजवाब गांधीजी ने तपाक से उत्तर दिया- " ठीक तो है , शेरनी के बच्चे को ही शेरनी का दूध हज़म होगा और उसे ही फायदा भी करेगा । आदमी के लिए तो माता का दूध ही सबसे अच्छा है । हम अपने को शेर नहीं बनाना चाहते । हमारी संस्कृति की जो विरासत है , वह हमें संस्कृत , हिन्दी और गुजराती ( स्वदेशी भाषाओं ) के माध्यम से ही मिल सकती है । हमारे साहित्य और भाषा में अगर कोई कमी है तो उसे दूर करने में ही हमारा पुरुषार्थ है । अंग्रेज़ी ने पुरुषार्थ के बल पर ही अपना साहित्य और प्रभाव बढ़ाया । अगर हम अंग्रेज़ी को अपनी मातृभाषा बनायेंगे तो वह हमारे लिए सांस्कृतिक आत्...