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अलविदा इमाम साहब

अलविदा इमाम साहब खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे से पूछे कि बता तेरी रजा क्या है? चरित्र अभिनेता के रूप में सर्वाधिक चर्चा पाने वाले कलाकार थे ए के हंगल। उन्होंने अपने पूरे फिल्मी करियर में वैसे तो लगभग सवा दो सौ फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें से कुछ भूमिकाएं तो पूरी फिल्म में छाई हुई थीं, लेकिन फिल्म शोले में निभाई उनकी नेत्रहीन इमाम साहब की छोटी भूमिका ने लोगों में उनकी बहुत बड़ी पहचान बनाई। यह भी कह सकते हैं कि उन्हें इस फिल्म के रोल ने अमर बना दिया, जो शायद ही किसी चरित्र अभिनेता को नसीब हो। कंपकंपाती-थरथराती सी उनकी आवाज और भावनाओं को व्यक्त करने का उनका अंदाज, जब फिल्म शोले में रामगढ़ के वासियों के मध्य उनका इकलौता बेटा अहमद (सचिन) घोड़े पर लाश की शक्ल में आता है, गांव वाले खामोश हैं, कोई कुछ नहीं बोलता..। सभी सन्न हैं..। ऐसे में इमाम साहब की आवाज आती है, इतना सन्नाटा क्यों है भाई..? उन्हें वीरू यानी धर्मेद्र पकड़कर अहमद के पास लाता है। वे अहमद को छूते हैं और नाम लेकर रो पड़ते हैं। इस बात से गांव वालों और ठाकुर यानी संजीव कुमार में कहासुनी होती है और जय या