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खरगोश तथा कछुए की कहानी – नए रुप में

हम सभी ने खरगोश तथा कछुए की कहानी सुनी होगी। हम सभी इस कहानी को सुन-सुनकर बड़े हुए है। हमने इससे सबक भी लिया होगा कि धीरे मगर लगातार कार्य करने वाला इंसान सफलता जरुर प्राप्त करता है। समय के साथ इस कहानी में नए संदर्भ जुड़े है। हम इस कहानी के नए रुप से आपको परिचित करायेंगें। होता क्या है कि जब खरगोश जीती हुई बाजी अपने अति आत्मविश्वास की हार गया ; तो उसने इस हार पर काफी चिंतन – मनन किया। काफी सोचने के बाद उसने महसूस किया कि उसे यह हार उसके अति आत्मविश्वास, असावधानी तथा आलस के चलते मिली। यदि वह चीजों को अपने लिए तय मानकर नहीं चलता तो उसे निश्चित ही जीत मिलती। तो उसने पुन: कछुए को दूसरे दौड़ के लिए आमंत्रित किया। कछूए भी इससे सहमत नजर आया। इस बार खरगोश ने प्रतियोगिता में बिना रुके दौड़ लगाई तथा विजय हासिल की। इस कहानी से हम सभी को यह सबक मिलता है कि तेज तथा सतत परिश्रम करने वाला व्यक्ति निश्चय ही विजय पथ पर अग्रसर होता है। लेकिन फिर से इस कहानी का अंत यही नहीं होता। हार के बाद कछूआ काफी उदास हुआ। उसने भी अपनी हार पर काफी सोच – विचार किया। काफी सोच – विचार के बाद उसके दिमाग में यह बात आ

दीपावली की शुभकामनायें

नमस्कार बंधुवर, चूँकि काफी दिनों  बाद  लेखन के माध्यम से आप सभी से रुबरु हूँ।  इसीलिए क्षमाप्रार्थी हूँ।  लेखन की सबसे बड़ी विशेषता है नियमित लेखन और पाठकों से जुड़ाव ।  सबसे पहले दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें दीपावली है दीपों का त्योहार हम सभी मनाते है भगवान राम के जमाने से यह त्योहार लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि क्या यह त्योहार केवल दीपों की अबलियां सजाने का नाम कुछ पटाखों - फुलझड़ियों का नाम तो फिर यह तो किसी भी दिन हो सकता है फिर क्यूँ एक दिन है नियत हम क्यों सभी चीजों में  हो जाते  है प्रतीकात्मक क्या कभी हमने सोचा है दीपावली केवल सजाने का नाम नहीं है अंधेरे मन को उजाले विचारों से भरने का नाम तभी तो विजयादशमी के बाद आता  है। केवल जीतने से विजय नहीं मिलती जीत तो मिलती है मन को जीतने से। इसलिए आईए हम सभी मिलकर दीपावली मनाए हर कोई अपने मन के अंधियाये को रौशन करें जहाँ हो रौशनी का टिमटिमाता दिया उसे कर से रौशन जगमगाते दिए से।

अलविदा इमाम साहब

अलविदा इमाम साहब खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे से पूछे कि बता तेरी रजा क्या है? चरित्र अभिनेता के रूप में सर्वाधिक चर्चा पाने वाले कलाकार थे ए के हंगल। उन्होंने अपने पूरे फिल्मी करियर में वैसे तो लगभग सवा दो सौ फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें से कुछ भूमिकाएं तो पूरी फिल्म में छाई हुई थीं, लेकिन फिल्म शोले में निभाई उनकी नेत्रहीन इमाम साहब की छोटी भूमिका ने लोगों में उनकी बहुत बड़ी पहचान बनाई। यह भी कह सकते हैं कि उन्हें इस फिल्म के रोल ने अमर बना दिया, जो शायद ही किसी चरित्र अभिनेता को नसीब हो। कंपकंपाती-थरथराती सी उनकी आवाज और भावनाओं को व्यक्त करने का उनका अंदाज, जब फिल्म शोले में रामगढ़ के वासियों के मध्य उनका इकलौता बेटा अहमद (सचिन) घोड़े पर लाश की शक्ल में आता है, गांव वाले खामोश हैं, कोई कुछ नहीं बोलता..। सभी सन्न हैं..। ऐसे में इमाम साहब की आवाज आती है, इतना सन्नाटा क्यों है भाई..? उन्हें वीरू यानी धर्मेद्र पकड़कर अहमद के पास लाता है। वे अहमद को छूते हैं और नाम लेकर रो पड़ते हैं। इस बात से गांव वालों और ठाकुर यानी संजीव कुमार में कहासुनी होती है और जय या

हिंदी में अंग्रेजी

हिंदी में अंग्रेजी

वहां भारत का साहित्य कहां था

वहां भारत का साहित्य कहां था

हिंदी के ऊपर प्रसिद्ध अहिंदी भाषी विद्वानों की उक्तियां

‘’ हम चाहते है कि सारी प्रांतीय बोलियां जिनमें सुंदर साहित्य की सृष्टि हुई है, अपने – अपने घर में (प्रांत) रानी बनकर रहे और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्यमणि हिंदी भारत – भारती होकर विराजती रहे। ‘’                                                                                                          - गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर   राष्ट्रभाषा के बिना आजादी बेकार है। - अवनींद्रकुमार विद्यालंकार। भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है।                                                         - (जस्टिस) कृष्णस्वामी अय्यर। हिंदी का पौधा दक्षिणवालों ने त्याग से सींचा है। - शंकरराव कप्पीकेरी। राष्ट्रभाषा हिंदी का किसी क्षेत्रीय भाषा से कोई संघर्ष नहीं है। - अनंत गोपाल शेवड़े। दक्षिण की हिंदी विरोधी नीति वास्तव में दक्षिण की नहीं , बल्कि कुछ अंग्रेजी भक्तों की नीति है।                                                                                                                               - के.सी. सारंगमठ। हिंदी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है।