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कहते है बिना विश्वास के कुछ नहीं होता, और इसी विश्वास पर दुनिया कायम है, मैंने इसी विश्वास पर चंद पंक्तियां लिखी है, आशा है आप सभी को पसंद आएगी......  विश्वास .............. आज भी मौजू़द है दुनिया में नमक की तरह , अब भी पेड़ों के भरोसे पक्षी सब कुछ छोड़ जाते हैं , बसंत के भरोसे  वृक्ष बिलकुल रीत जाते हैं , पतवारों के भरोसे नाव समुद्र लांघ जाती   हैं , बरसात के भरोसे बीज धरती में समा जाते हैं , अंजाने पुरुष के पीछे सदा के लिये स्त्री चल देती हैं। मां ममता के पीछे अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है। मातृभूमि के लिए वीर अपनी आहूति देते है। यदि विश्वास नही होता तो ये जमीं नही होती, ये आस्मां नही होता। ये लोक का विश्वास है कि परलोक के सहारे ये अपना भविष्य सुधारती है। फिर क्यूं लोग पूछते है विश्वास क्या है, लेकिन मैं तो कहता हूँ विश्वास ही सब कुछ है, क्यूंकि विश्वास में आस है और इसी आस में हम और आप है हमारे रिश्तों की बुनियाद है।                                        - साकेत सहाय
  जब अधिकारी के कहने पर नेहरुजी ने संदेश हिंदी में पढ़ा ...... वर्ष 1962 की बात है , भारत-चीन युद्ध चल रहा था। चीन ने पंचशील समझौते का उल्लंघन कर भारत पर अचानक आक्रमण कर दिया था। युद्ध को लेकर भारत की कोई तैयारी नहीं थी। अत: भारत कमजोर पड़ता जा रहा था। चारों ओर निराशा का माहौल था।    प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देशवासियों को निराशा से उबारने के लिए आकाशवाणी से राष्ट्र के नाम संदेश   देना तय किया। उस समय आकाशवाणी के प्रभारी अधिकारी मोहन सिंह सेंगर थे। वे प्रधानमंत्री के आवास पर रिकॉर्डिग के लिए गए।   कार्यक्रम के अनुसार प्रधानमंत्री को संदेश का मूल पहले अंग्रेजी में पढ़ना था , फिर उसका हिंदी अनुवाद पढ़ना था। सेंगर साहब को यह नहीं जंचा कि अंग्रेजी को अहमियत देकर उसे मूल पाठ के रूप में पढ़ा जाए और राष्ट्रभाषा हिंदी को अनुवाद की भाषा बनाकर उसके साथ सौतेला व्यवहार किया जाए।   वे नेहरूजी से बोले- सर! आपातकाल के इस समय में भारत का प्रधानमंत्री हिंदी संदेश अनुवाद के रूप में पढ़े , यह ठीक नहीं लगता। ऐसे समय में आप यदि मूल हिंदी में ही बोलें तो प्रभावी रहेगा। नेहरूजी ने तत्क

शेरशाह सूरी : एक महान राष्ट्र निर्माता

इतिहास प्रारंभ से ही मेरी रुचि का विषय रहा है और जब हाल में भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के जन्म शताब्दी अवसर पर टाइम पत्रिका ने विश्व इतिहास के 100 प्रभावशाली राजनैतिक व्यक्तियों की सूची निकाली जिसमें भारत के तीन महान व्यक्तियों सम्राट अशोक, अकबर एवं महात्मा गांधी का नाम था तो सहसा भारतीय इतिहास के महान सम्राट शेरशाह सूरी पर ध्यान चला गया। इसमें कही से कोई शक नही है कि ये तीनों ही व्यक्ति भारत राष्ट्र की महान धरोहर है जिनका राष्ट्र के निर्माण में अमूल्य योगदान रहा है। मगर इस सूची में अगर मध्यकालीन भारत के महान सम्राट शेरशाह सूरी का अगर जिक्र हुआ रहता तो भारतीय परिप्रेक्ष्य में सही मायनों में यह सूची परिपूर्ण कहलाती। कभी-कभी इतिहास कुछेक महान व्यक्तियों के प्रति निर्दयी-सा हो जाता है। शायद इनमें से एक शेरशाह सूरी माने जा सकते है। अगर इतिहास अकबर को महानतम धर्मनिरपेक्ष सम्राट की श्रेणी में रखता है तो उस अकबर के ऐतिहासिक प्रेरणास्रोत शेरशाह सूरी (1486 – 1545) माने जा सकते है। शेरशाह सूरी एक ऐसा व्यक्ति था, जो जमीनी स्तर से उठ कर शंहशाह बना। जमीनी स्तर का यह शंहशाह अप

राष्ट्रीय मतदाता दिवस

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भारतीय निर्वाचन आयोग के स्थापना की 60 वीं वर्षगांठ के अवसर पर इस वर्ष 25 जनवरी को पहली बार राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रुप में मनाया जा रहा है। 26 जनवरी से पहले इस दिवस की प्रासंगिकता बेहद सटीक बैठती है। क्योंकि किसी भी गणतांत्रिक देश की पहली पहचान मतदान का अधिकार है। ताकि वो अपने सही प्रतिनिधि का चुनाव कर सके। हमारे देश में अशिक्षित लोगों की बहुत बड़ी आबादी निवास करती है। जिससे यहां लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति लोगों को जागरुक करना एक कठिन कार्य है। इसी उद्देश्य से मतदाताओं को और अधिक जागरुक बनाने और उन्हें मतदान करने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद के साथ मतदाता दिवस की शुरुआत गई है। इस अवसर पर नए मतदाताओं को एक बैज (बिल्ला) भी दिया जाएगा, जिसमें लोगो (प्रतीक चिह्न) के साथ नारा अंकित होगा- मतदाता बनने पर गर्व है, मतदान को तैयार हैं। मतदाता दिवस आयोजन के तहत देशभर में मतदान केंद्र वाले क्षेत्रों में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के नए मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में दर्ज किए जाएंगे। गौरतलब है कि 1988 में संविधान (61वां संशोधन) अधिनियम द्वारा मतदान की उम्र 21 वर्ष से 18 वर्ष की गयी थी। ले