प्रेमचंद की जयंती पर उनका एक पत्र पढ़िए जो जयशंकर प्रसाद के नाम है। उन दिनों प्रेमचंद मुंबई में थे और फ़िल्मों के लिए लेखन कर रहे थे- ====================== अजंता सिनेटोन लि. बम्बई-12 1-10-1934 प्रिय भाई साहब, वन्दे! मैं कुशल से हूँ और आशा करता हूँ आप भी स्वस्थ हैं और बाल-बच्चे मज़े में हैं। जुलाई के अंत में बनारस गया था, दो दिन घर से चला कि आपसे मिलूँ, पर दोनों ही दिन ऐसा पानी बरसा कि रुकना पड़ा। जिस दिन बम्बई आया हूँ, सारे रास्ते भर भीगता आया और उसका फल यह हुआ कि कई दिन खाँसी आती रही। मैं जब से यहाँ आया हूँ, मेरी केवल एक तस्वीर फ़िल्म हुई है। वह अब तैयार हो गई है और शायद 15 अक्टूबर तक दिखायी जाय। तब दूसरी तस्वीर शुरू होगी। यहाँ की फ़िल्म-दुनिया देखकर चित्त प्रसन्न नहीं हुआ। सब रुपए कमाने की धुन में हैं, चाहे तस्वीर कितनी ही गंदी और भ्रष्ट हो। सब इस काम को सोलहो आना व्यवसाय की दृष्टि से देखते हैं, और जन-रुचि के पीछे दौड़ते हैं। किसी का कोई आदर्श, कोई सिद्धांत नहीं है। मैं तो किसी तरह यह साल पूरा करके भाग आऊँगा। शिक्षित रुचि की कोई परवाह नहीं करता। वही औरतों का उठा ले जाना, बलात्...