Wednesday, December 28, 2022

लीलावती

 गणितज्ञ #लीलावती का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना है। उनके बारे में कहा जाता है कि वो पेड़ के पत्ते तक गिन लेती थी। शायद ही कोई जानता होगा कि आज यूरोप सहित विश्व के सैंकड़ों देश जिस गणित की पुस्तक से गणित पढ़ा रहे हैं, उसकी रचयिता भारत की एक महान गणितज्ञ महर्षि भास्कराचार्य की सुपुत्री लीलावती है। आज गणितज्ञों को गणित के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में लीलावती पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।  आइए जानते हैं महान गणितज्ञ लीलावती के बारे में जिनके नाम से गणित को पहचाना जाता था।


दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में #भास्कराचार्य नामक गणित एवं ज्योतिष विद्या के बड़े पंडित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था।


वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्योतिष गणना से जान लिया था कि ‘वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।’


उन्होंने बहुत कुछ सोचने के बाद ऐसा लग्न खोज निकाला, जिसमें विवाह होने पर कन्या विधवा न हो। विवाह की तिथि निश्चित हो गई। उस समय जलघड़ी से ही समय देखने का काम लिया जाता था।


एक बड़े कटोरे में छोटा-सा छेद कर पानी के घड़े में छोड़ दिया जाता था। सूराख के पानी से जब कटोरा भर जाता और पानी में डूब जाता था, तब एक घड़ी होती थी।

पर विधाता का ही सोचा होता है। लीलावती सोलह श्रृंगार किए सजकर बैठी थी, सब लोग उस शुभ लग्न की प्रतीक्षा कर रहे थे कि एक मोती लीलावती के आभूषण से टूटकर कटोरे में गिर पड़ा और सूराख बंद हो गया; शुभ लग्न बीत गया और किसी को पता तक न चला।


विवाह दूसरे लग्न पर ही करना पड़ा। लीलावती विधवा हो गई, पिता और पुत्री के धैर्य का बांध टूट गया। लीलावती अपने पिता के घर में ही रहने लगी। पुत्री का वैधव्य-दु:ख दूर करने के लिए भास्कराचार्य ने उसे गणित पढ़ाना आरंभ किया। उसने भी गणित के अध्ययन में ही शेष जीवन की उपयोगिता समझी।


थोड़े ही दिनों में वह उक्त विषय में पूर्ण पंडिता हो गई। पाटी-गणित, बीजगणित और ज्योतिष विषय का एक ग्रंथ ‘सिद्धांतशिरोमणि’ भास्कराचार्य जी ने ही बनाया है। इसमें गणित का अधिकांश भाग लीलावती की रचना है।


पाटीगणित के अंश का नाम ही भास्कराचार्य ने अपनी कन्या को अमर कर देने के लिए ‘लीलावती’ रखा है।


भास्कराचार्य ने अपनी बेटी लीलावती को गणित सिखाने के लिए गणित के ऐसे सूत्र निकाले जो काव्य रूप में होते थे। वे सूत्र कंठस्थ करने होते थे।


उसके बाद उन सूत्रों का उपयोग करके गणित के प्रश्न हल करवाए जाते थे।कंठस्थ करने के पहले भास्कराचार्य लीलावती को सरल भाषा में, धीरे-धीरे समझा देते थे।


वे बच्ची को प्यार से संबोधित करते चलते थे, “हिरन जैसे नयनों वाली प्यारी बिटिया लीलावती, ये जो सूत्र हैं…।” बेटी को पढ़ाने की इसी शैली का उपयोग करके भास्कराचार्य ने गणित का एक महान ग्रंथ लिखा, उस ग्रंथ का नाम ही उन्होंने “लीलावती” रख दिया।


आजकल गणित को एक शुष्क विषय माना जाता है पर भास्कराचार्य का ग्रंथ ‘लीलावती‘ गणित को भी आनंद के साथ मनोरंजन, जिज्ञासा आदि का सम्मिश्रण करते हुए कैसे पढ़ाया जा सकता है, इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। लीलावती का एक उदाहरण देखें- ‘निर्मल कमलों के एक समूह के तृतीयांश, पंचमांश तथा षष्ठमांश से क्रमश: शिव, विष्णु और सूर्य की पूजा की, चतुर्थांश से पार्वती की और शेष छ: कमलों से गुरु चरणों की पूजा की गई।


अये, बाले लीलावती, शीघ्र बता कि उस कमल समूह में कुल कितने फूल थे..?‘

उत्तर-120 कमल के फूल।


वर्ग और घन को समझाते हुए भास्कराचार्य कहते हैं ‘अये बाले,लीलावती, वर्गाकार क्षेत्र और उसका क्षेत्रफल वर्ग कहलाता है।


दो समान संख्याओं का गुणन भी वर्ग कहलाता है। इसी प्रकार तीन समान संख्याओं का गुणनफल घन है और बारह कोष्ठों और समान भुजाओं वाला ठोस भी घन है।‘


‘मूल” शब्द संस्कृत में पेड़ या पौधे की जड़ के अर्थ में या व्यापक रूप में किसी वस्तु के कारण, उद्गम अर्थ में प्रयुक्त होता है।


इसलिए प्राचीन गणित में वर्ग मूल का अर्थ था ‘वर्ग का कारण या उद्गम अर्थात् वर्ग एक भुजा‘।


इसी प्रकार घनमूल का अर्थ भी समझा जा सकता है। वर्ग तथा घनमूल निकालने की अनेक विधियां प्रचलित थीं।


लीलावती के प्रश्नों का जबाब देने के क्रम में ही “सिद्धान्त शिरोमणि” नामक एक विशाल ग्रन्थ लिखा गया, जिसके चार भाग हैं- (1) लीलावती (2) बीजगणित (3) ग्रह गणिताध्याय और (4) गोलाध्याय।


‘लीलावती’ में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है।


अकबर के दरबार के विद्वान फैजी ने सन् 1587 में “लीलावती” का #फारसी भाषा में अनुवाद किया।

अंग्रेजी में “लीलावती” का पहला अनुवाद जे. वेलर ने सन् 1716 में किया।


कुछ समय पहले तक भी भारत में कई शिक्षक गणित को दोहों में पढ़ाते थे। जैसे कि पन्द्रह का पहाड़ा…तिया पैंतालीस, चौके साठ, छक्के नब्बे… अट्ठ बीसा, नौ पैंतीसा…।

इसी तरह कैलेंडर याद करवाने का तरीका भी पद्यमय सूत्र में था, “सि अप जूनो तीस के, बाकी के इकतीस, अट्ठाईस की फरवरी चौथे सन् उनतीस!” 

इस तरह गणित अपने पिता से सीखने के बाद लीलावती भी एक महान गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री के रूप में जानी गयी।


मनुष्य के मरने पर उसकी कीर्ति ही रह जाती है अतः आज गणितज्ञो को लीलावती पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। हमारे पास बहुत अनमोल विरासत है जिसे छोड़कर हम आधुनिकता की दौड़ में विदेशों की अंधी नकल कर रहे हैं। 


साभार- सोशल मीडिया

Saturday, December 24, 2022

चुनाव -२०२४

 2024  का चुनाव!

अधिकांश मीडिया संगठनों, पत्रकारों द्वारा भारतीय समाज को विशेष रूप से हिंदू समाज को जातिगत भेदभाव के आधार पर बांटा जाता है। यह गलत है। दलित, ओबीसी, अगड़ों के आधार पर चुनावी मतों का निर्धारण किया जाता है। नेताओं के टिकट तय किये जाते हैं । यह गलत है। भारतीयता का अपमान है। मीडिया जिसे चौथा खंभा माना जाता है वह भी इस खेल में शामिल हैं। आज दलित , अगड़ा कोई नही है सब पैसों का खेल हैं । जो संपन्न है वह अगड़ा है और जो वंचित  है वह दलित हैं। हमें इस आधार पर हिंदुओं या किसी भी संप्रदाय को विभाजित नही करना चाहिए ।

मैं यह सब अधिकांश चुनावों में देखता हूँ । इसका प्रबल विरोध होना चाहिये । विकसित भारत  का चुनाव सर्व भारतीय समाज के आधार पर होना चाहिए । न कि दलित, पिछड़ा, ओबीसी, अगड़ी जाति के आधार पर होना चाहिए । भारतीयता की पहचान है -सभी का समावेश । उसमें धर्म, जाति न हो । एक भारतीय नागरिक का विकास पहला उद्देश्य हो। भले ही यह सोच धीरे-धीरे विकसित हो पर जोरदार कोशिश तो हो। 

आजादी के पहले अंग्रेजों ने इस देश को विभाजित सोच के आधार पर बाँटा। बाद में वामपंथी, समाजवादी,  दक्षिणपंथी पार्टियों ने भी धर्म-जाति के आधार पर इस देश के चुनावों को प्रभावित किया। फिर मंडल-कमंडल की राजनीति की गई । सेकुलर, भ्रष्टाचार एवं विकास जैसे शब्दों ने भी खूब बेड़ा गर्क किया। 

शीघ्र ही चुनाव आने वाला है। जनता को जाति- धर्म से अधिक अपनी आंखें खुली रखकर देशहित में निर्णय लेना होगा। बहुत- हुआ सेकुलरवाद, जातिवाद और धर्म की राजनीति । 

हमारा देश 10000 वर्ष पुरानी सभ्यताओं, परंपराओं का देश हैं । जहां सभी कुछ वाचिक आधार पर पुष्पपित-पल्लवित हुई। अतः देश को 70 सालों के आधार पर मत तौलिए। देखिये देश कब-कब विभाजित हुआ। देश में दोमुँहे विरासत वाले कौन है। 

2024 का चुनाव देहरी पर खड़ा है। जिसमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व आने वाला है। उस महापर्व का स्वागत पूरे  जोशो-खरोश के साथ करें । अपनी आंख-कान-नाक खुली रखें । देश को बहुसंख्यक समाज, अपने हितों की खातिर जातिगत आधार पर बांटने वालों तथा सर्व भारतीयता की पहचान- अल्पसंख्यक वर्ग को चुनावी चश्में से देखने वालों को सबक सिखाए। 

चुनाव को सेकुलर बनाम नाॅन-सेकुलर में बांटने वालों से प्रश्न पूछें । 

2024 का चुनाव हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है! यह हमें तय करने का अवसर देता है कि हम किसे अंग्रेजी गुलामी से आजादी की 75वीं वर्षगाँठ मनाने का नेतृत्व सौंपे। 

हमारी गति, नीति को प्रभावित करने वाली अंग्रेजी शासन व्यवस्था ने हमें मूढ़ एवं अंतहीन स्वार्थी बना दिया है। कुछ सालों तक तो हमने अपनी परंपराओं को जिंदा रखा । पर अब धीरे-धीरे वह पीढ़ी भी कमजोर हो रही हैं । बाद की पीढी ने इसे एक हद तक संभाला रखा। पर वर्तमान पीढ़ी अपनी विरासत एवं परंपराओं से उस हद तक परिचित नहीं हैं । ऐसे में यह जरूरी है कि हम इस पीढी को जो सोशल मीडिया की पीढी है और 2024  में पहली बार अपना मत देने को तैयार खड़ी है। उसे लोकतांत्रिक रूप से जागरूक बनाए।   ऐसे  में परिवारजनों, शैक्षणिक संस्थानों एवं मीडिया की भूमिका बढ़ जाती हैं । मीडिया के लिए यह जरूरी है कि वह अपने निदेश, निर्देश एवं रिपोर्टिंग में तटस्थ रहे। तथा सर्व-भारतीय समाज के निर्माण के लिए कार्य करें। 

नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएँ !

जय हिंद!जय भारत! जय हिंदी !

@डॉ साकेत सहाय 

hindisewi@gmail.com

#साकेत_विचार

Tuesday, December 20, 2022

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

 




खड़ी बोली हिंदी की सशक्तता के अहम् हस्ताक्षर तथा हिन्दी पत्रकारिता के आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी  (1864 - 21 दिसम्बर 1938) की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन  !

#द्विवेदी_युग

#साकेत_विचार

Saturday, December 17, 2022

वस्त्र

 अभी-अभी गाँव की पगडंडियों पर बैंक के काम से घूमते हुए मन में विचार आए, सोचा आप सभी से साझा कर लूँ। अन्यथा बाद में समय के अभाव में यूँ ही धूल जाएँगे। 





वस्त्र


सुना था

वस्त्र मनुज-मानवी के 

होते है आभूषण 

इससे पनपे संस्कार 

और निर्मित हो एक संस्कृति 


पर अब सुना है वस्त्र 

धर्म भी है

भला  बीच में  कैसे आ  गए

धर्म  व  पंथ


आए और बीच बाज़ार में 

धर्म-परंपरा के नाम पर फेंक दें 

बुर्का, हिजाब सब, 

सब मिल उतार दें भेद सब,


पर लज्जा और सम्मान रखें

रखें मान संस्कार का 

और न पाले

 “पठान” में बिकिनी गर्ल बन जाने का 

बाज़ार का सबब


वस्त्र संस्कार

संस्कृति

सभ्यता के होते है 

सूचक

पर न होते है दबाव, 

लालच, भोग, 

कुपरंपरा के बोधक। 


#साकेत_विचार

Friday, December 16, 2022

पेंशनर दिवस


आज पेंशनर्स डे है।  17 दिसंबर, 1982 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने श्री डी एस नकारा के पेंशन मामले में एक ऐतिहासिक  निर्णय दिया था । इस फैसले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से यह फैसला सुनाया था कि “पेंशन न तो कोई उपहार है और न ही इनाम।  बल्कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों का अधिकार है  जिसने लंबे समय तक देश की सेवा की।  सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि कर्मचारी एक सम्मानित जीवन जी सके।” इस फैसले के बाद पेंशन में वेतन की भांति संशोधन किये जाने लगे।  हालाँकि इसी कड़ी में सेवानिवृत्त बैंक कर्मियों के पेंशन अपडेशन  का मामला  भारत सरकार के पास दीर्घ समय से लम्बित है। इस तारीख़ की उपयोगिता उन सभी लोगों के लिए न्यायपरक पेंशन व्यवस्था लागू करने के रूप में भी है। 

परंतु, 01 अप्रैल,  2005 के बाद हुई नियुक्तियों के नौकरीपेशा लोगों के लिए तो सरकार ने राष्ट्रीय पेंशन योजना लागू की है। जिसकी स्थिति अस्पष्ट है और बाज़ार पर आधारित है। सेवानिवृत्त बैंक कर्मियों का भी पेंशन लंबे समय से अपडेशन के अभाव में असम्मानजनक है।  साथ ही निजी क्षेत्रों में भी पेंशन की स्थिति दयनीय या न के बराबर है ।

अत: सरकारी कर्मियों के साथ ही सभी पात्र लोगों के लिए भी सभी राज्य एवं केंद्र सरकारों को एक स्पष्ट पेंशन नीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है । साथ ही सभी सरकारी कर्मियों के लिए भी पुराने पेंशन पर पुनर्विचार करने की नितांत आवश्यकता है ।  सभी पात्र लोगों के लिए पेंशन सुरक्षा लागू हो इस दिवस की सार्थकता यही है। 

#पेंशन #साकेत_विचार

Saturday, December 10, 2022

धर्म-संस्कार



सिकंदराबाद के निकट पिलखन गाँव की कहानी यह है।

1904 का सन् था, बरसात का मौसम और मदरसे की छुट्टी हो चुकी थी...

लड़कियाँ मदरसे से निकल चुकी थी...

अचानक ही आँधी आई और एक लड़की की आँखों में धूल भर गई, आँखें बंद और उसका पैर एक कुत्ते पर जा टिका...

वह कुत्ता उसके पीछे भागने लगा...

लड़की डर गई और दौड़ते हुए एक ब्राह्मण मुरारीलाल शर्मा के घर में घुस गई...

जहाँ 52 गज का घाघरा पहने पंडिताइन बैठी थी...

उसके घाघरे में जाकर लिपट गई, ‘‘दादी मुझे बचा लो..।’’

दादी की लाठी देख कुत्ता तो वहीं से भाग गया, लेकिन बाद में जहाँ भी दादी मिलती, तो यह बालिका उसको राम-राम बोलकर अभिवादन करने लगी,

दादी से उसकी मित्रता हो गई और दादी उसे समय मिलते ही अपने पास बुलाने लगी, क्योंकि दादी को पंडित कृपाराम ने उर्दू में नूरे हकीकत लाकर दी थी, दादी उर्दू जानती थी, परंतु अब आँखें कमजोर हो गई थी, इसलिए उस लड़की से रोज-रोज वह उस ग्रंथ को पढ़वाने लगी और यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा।

लड़की देखते ही देखते पंडितों के घर में रखे सारे आर्ष साहित्य को पढ़-पढ़कर सुनाते हुए कब विद्वान बन गई पता ही नहीं, पता तो तब चला, जब एक दिन उसका निकाह तय हो गया और दादी कन्यादान करने गई।

निकाह के समय जैसे ही उसने अपने दूल्हे को देखा तो वह न केवल पहले से शादीशुदा था वरन एक आँख का काना भी था, इसलिए लड़की को ऐसा वर पसंद नहीं आया, परंतु घरवालों और रिश्तेदारों ने दबाव डाला।

परंतु अबला ने जैसे ही देखा कि 52 गज के घाघरे वाली पंडिताइन कन्यादान करने आई है, अपने पोते के साथ तो एक बार फिर इतने वर्षो बाद दादी से चिपट गई थी, ‘दादी मुझे बचा लो, मैं काने से निकाह नहीं करूँगी।’

‘काने से नहीं करेगी तो तेरे लिए क्या कोई शहजादा आएगा?’

वह वधू दादी को छोड़ने का नाम न ले रही थी, दादी भी रोने लगी, उसे समझाने का प्रयास किया, कि ‘जैसा भी है, उसी से नियति समझकर शादी कर ले।

"अगर आपकी बेटी होती तो क्या आप उसकी शादी काने से कर देतीं?" लड़की ने दादी से पूछा था।

‘तू भी तो मेरी ही बेटी है।’

‘सिर पर हाथ रखकर कहो कि मैं तुम्हारी बेटी हूँ।’

‘हाँ तुम मेरी बेटी हो।’ कहते हुए पंडिताइन ने उस मुस्लिम कन्या के सिर पर हाथ रख दिया था।

"तो फिर हमेशा के लिए अपने 52 गज के घाघरे में मुझे छिपा लो दादी।’’

"मतलब।"

‘अपने इस पौते से मेरा विवाह करके मुझे अपने घर ले चलो।’

‘क्या?’ कोहराम मच गया, एक मुस्लिम लड़की की इतनी हिम्मत की निकाह के दिन जात-बिरादरी की बदनामी करे और पंडित के लड़के से शादी करने की बात कह दे, आखिर इतनी हिम्मत आई उसके अंदर कहाँ से...

जब किसी ने पूछा तो, उसने बताया, ‘दादी को नूरे हकीकत यानी कि दयानंद सरस्वती का सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर सुनाते हुए।

कर्म से मुझे पंडिताइन बनने का हक वेदों ने दिया है और मैं इसे लेकर रहूँगी।’

पंचायत बैठी, लड़की अब अपनी बात पर अड़ गई कि शादी करेगी तो पंडित के लड़के से वरना नहीं, पढ़ेगी तो वेद पढ़ेगी वरना कुरान नहीं।

चतुरसेन और पंडित के लड़के की यारी थी, चतुरसेन आर्य समाजी किशोर था और उसने पंडित के लड़के को मना लिया था कि मुस्लिम लड़की से शादी करेगा तो सात पीढ़ियों के पूर्वजों के पाप धुल जाएँगे। उधर पंडित कृपाराम ने दादी को समझाया और दादी भी मान गई। मुरारीलाल शर्मा ने भी हाँ भर दी।

लेकिन मुस्लिम जमात में कोहराम मच गया और उस मुस्लिम परिवार का हुक्का-पानी गिरा दिया... उसे मुस्लिम धर्म से बाहर निकाल दिया, कुएँ से पानी भरना बंद हो गया।

परंतु वह परिवार भी अब इसलाम की दकियानूसी बातों से तंग आ चुका था और उसने अपनी पत्नी और तीन बेटों के साथ चार दिन में ही घर में कुआँ खोदकर पानी की समस्या से छुटकारा पाया और अपनी बेटी की शादी हिन्दू युवक से करने के साथ-साथ सपरिवार वैदिक धर्म अंगीकार करने की घोषणा कर दी।

यज्ञ हवन के साथ उस युवती का पिता आर्य बन गया और नाम रखा चौधरी हीरा सिंह।

आज हीरा सिंह की बेटी की शादी थी, किसी ने कहा, ‘हिन्दू इसकी बेटी ले जाएँगे, लेकिन इसके घर का हुक्का-पानी तक न पिएँगे।’ ठाकुर बडगुजर ने जब यह सुना तो हीरासिंह का हुक्का भर लाया और पहली घूँट भरी और फिर हीरा के मुँह में नेह ठोक दी और हीरा जाटों, पंडितों, और ठाकुरों के साथ बैठकर हुक्का पीने लगा।

पंडित कृपाराम ने उसके नए कुएँ से पानी भरा और सबको पिलाया और खुद भी पिया।

मुरारीलाल शर्मा ने एक लंबा भाषण दिया और आर्य समाज के प्रख्यात भजनीक तेजसिंह ने कई भजन सुनाए और बिन दान-दहेज के उस मुस्लिम बालिका मदीहा खान का विवाह संस्कार ब्राह्मण के लड़के से हो गया।

उस जमाने में अपनी तरह का यह पहला अंतरधर्मीय विवाह था।

पंडित कृपाराम आगे चलकर स्वामी दर्शनानंद सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हुए और उन्होंने हरिद्वार के निकट एक गुरुकुल महाविद्यालय स्थापित किया।

बालक चतुरसेन प्रख्यात उपन्यासकार हुए और आर्य समाज अनाज मंडी की स्थापना की और हीरा सिंह विधायक तक बना।

स्वामी दर्शनानंद, चतुरसेन शास्त्री, ठाकुर हीरासिंह आदि को आज सब जानते हैं, लेकिन इतिहास के पन्नों में सरस्वती (मदीहा खान) का कहीं नाम नहीं है, जिनकी प्रेरणामात्र से आधा दर्जन लोग विद्वान और समाजसेवी बने और सिकंदराबाद आर्य समाज वैदिक धर्म प्रचार का सबसे बड़ा गढ बन गया था।

संदर्भ

1. यादें,

2. मेरी आत्मकथा, चतुरसेन शास्त्री,

4. मेरा संक्षिप्त जीवन परिचय,

स्वामी दर्शनानंद सरस्वती.


✍️............#साभार




Saturday, December 3, 2022

देशरत्न जयंती समारोह







आज दिनांक: 03.12.2022 को पंजाब नैशनल बैंक के बिहार अंचल में अंचल प्रमुख श्री पूर्ण चंद्र बेहरा की अध्यक्षता में भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के प्रमुख सेनानी एवं भारतीय संविधान के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले भारत के प्रथम राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 139वीं जयंती समारोह का आयोजन किया गया।  इस अवसर पर अपनी सादगी एवं सरलता से देश की माटी को सुशोभित करने वाले डॉ राजेन्द्र प्रसाद को अंचल प्रमुख एवं स्टाफ सदस्यों द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए।  समारोह में वक्ताओं ने राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए देश के प्रति उनके त्याग व समर्पण को स्मरण करते हुए उनकी मेधा शक्ति को विशेष रूप से रेखांकित किया। संविधान निर्माण तथा देश की स्वाधीनता संग्राम में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालते हुए अंचल प्रमुख ने बताया कि पंजाब नैशनल बैंक को इस बात का गर्व है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति हमारे बैंक की शाखा एक्जीबिशन रोड, पटना के सम्मानित ग्राहक रहे।  सभा का संयोजन करते हुए मुख्य प्रबन्धक (राजभाषा) डॉ साकेत सहाय ने प्रस्तुतीकरण के माध्यम से उनके योगदान को स्मरण करते हुए कहा कि राष्ट्रनायकों की जीवन गाथा से हमें बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलता है।   गांधीजी को वास्तव में महात्मा गांधी बनाने में चंपारण सत्याग्रह की बड़ी भूमिका रही और इसकी पृष्ठभूमि में देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद का बहुत बड़ा योगदान रहा। इस अवसर पर बैंक द्वारा अंतराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस का  आयोजन किया गया तथा दिव्यांग स्टाफ़ सदस्यों को अंचल प्रबंधक द्वारा सम्मानित किया गया।

#देशरत्न

#साकेत_विचार

सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...