Wednesday, September 21, 2022

हास्य व्यंग्य कलाकार राजु श्रीवास्तव

 



अपने अभिनय की हँसी से सबको हँसाने वाले 58 वर्षीय चर्चित हास्य कलाकार, अभिनेता राजू श्रीवास्तव का दिल्ली के अखिल भारतीय आर्यूविज्ञान संस्थान में आज निधन हो गया। 

कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव पिछले करीब डेढ़ महीने से अस्पताल में भर्ती थे।  बीते १० अगस्त को वे दिल का दौरा पड़ने के कारण अस्पताल में भर्ती कराए गए थे।  लोकप्रिय हास्य कलाकार और अभिनेता राजू श्रीवास्तव का सफर बेहद संघर्ष भरा था, कभी मुंबई में ऑटो चलाकर वे गुजारा करते थे। गजोधर भैया के नाम से प्रसिद्ध  कानपुर निवासी राजू श्रीवास्तव का असली नाम सत्य प्रकाश श्रीवास्तव था। उनका जन्म 25 दिसंबर 1963 को हुआ था।  उन्होंने अपने अभिनय से सभी को खूब हंसाया।

राजू श्रीवास्तव ने राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमायी थीं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजावदी पार्टी ने उन्हें कानपुर सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन उन्होंने यह कहते हुए टिकट लौटा दिया था कि उन्हें पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं का समर्थन नहीं मिल रहा है।  बाद में उन्होंने उसी साल मार्च 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। 

राजू श्रीवास्तव, 1980 के दशक के अंत से मनोरंजन जगत में सक्रिय रहे।  उन्हें 2005 में स्टैंड-अप कॉमेडी शो ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज' के पहले सीजन में भाग लेने के बाद उन्हें अपार लोकप्रियता मिली थी। 

उनकी असामयिक मृत्यु पर कहा जा सकता है ‘ ज़िंदगी छोटी-बड़ी नहीं होती, ज़िंदगी कार्यनिष्ठा और कर्म पर आधारित होती है। 

#अलविदा_राजू_श्रीवास्तव

विनम्र श्रद्धांजलि 💐🙏

#साकेत_विचार

Sunday, September 18, 2022

हिंदी में शोध और अन्य विचारणीय पहलू





हिंदी अपने ही बलबूते आम आदमी की ज़ुबान होने के बल पर आगे बढ़ रही है। मेरा यह व्यक्तिगत रूप से मानना है कि हिंदी का सबसे बड़ा अहित इस सोच ने किया है कि यह उत्तर भारत की भाषा है, जबकि इसे उत्तर-दक्षिण के खाँचे से इतर राष्ट्रभाषा के रूप में सशक्त करने की जिम्मेदारी व्यवस्था को लेनी थी। जिसे व्यवस्था ने अंग्रेज़ीयत के कारण नहीं सँभाली और अपने पाप को छुपाने की ख़ातिर हिंदी को भारतीय भाषाओं की प्रतिस्पर्धी बना डाला। अनेक कुतर्क गढ़े ग़ए। स्वभाषा के बिना हर कोई भाषाविद् और तकनीकीविद् होने लगा। पत्रकारिता और सिनेमा जगत ने भी हिंदी को इवेंट की भाषा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। थोड़ा-बहुत विकास हुआ भी तो हिंदी की आंतरिक शक्ति के बल पर।

दूसरी बात हिंदी में जुगाड़ू और चाटुकार लोगों का जमघट बना रहा। अकादमिक जगत में यह बात क़ायम रही कि हिंदी के विकास का ठेका हिंदी के अध्यापकों ने लिया है। वैसे ही जैसे राजभाषा की प्रगति की जिम्मेदारी केवल राजभाषा सेवियों की है पर तकनीक, प्रबंधन या अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोग तो केवल अंग्रेज़ी के लिए ही बने हुए है। उच्च मध्यवर्गीय परिवारों में अंग्रेज़ी के व्याप्त मोह ने हिंदी को केवल निम्नवर्ग की भाषा बनाने का कार्य किया। अब यदि वास्तव में सरकार गंभीर हैं तो अनुच्छेद ३५१ के अनुरूप वाली हिंदी माध्यम में शोध हो इस दिशा में सरकार और समाज को गंभीर होना होगा। इस देश की समृद्धि के लिए संस्कृत के सहयोग से एक प्रमुख भाषा में ज्ञान-विज्ञान की धारा प्रवाहित करनी होगी, यह सबके सार्थक सहयोग से ही होगा। 

विश्वविद्यालय स्तर पर  शिक्षकों को विद्यार्थियों के बीच हिंदी को ज्ञान-विज्ञान की भाषा बनाने के लिए अनिवार्य पहल करनी होगी। बहुत कम ऐसे शिक्षक हैं जो विश्वविद्यालय में विमर्श के माध्यम से छात्रों को अपना शोध पत्र हिंदी में  लिखने के लिए प्रेरित  करते हैं।   ऐसी पहल हिंदीतर क्षेत्रों में भी साथ-साथ हो तभी हिंदी वास्तव में राष्ट्रभाषा  बनेगी। साहित्य की अपनी जगह है पर विश्वविद्यालय के सभी विभागों को अपनी भूमिका समझनी होगी और राष्ट्रीय स्तर पर  तकनीक,ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति जैसे विषयों में हिंदी के विस्तार हेतु कार्य करने का दायित्व समझना होगा।

मैंने २००८ में भारत में इलेक्ट्रोनिक मीडिया और हिंदी :१९९० के दशक के बाद -एक समीक्षात्मक अध्ययन विषय पर भारतीय वायु सेना में रहते हुए प्री-पी एच डी परीक्षा पास करने के बाद पंजीकरण किया था और २०१३ में इसे विश्वविद्यालय को प्रस्तुत किया था। मेरे शोध की काफ़ी प्रशंसा हुई।   मुझे जहां तक ज्ञात है इस विषय पर उस समय शोध करने वाला मैं पहला व्यक्ति था।  यह सत्य है कि भाषा के क्षेत्र में बहुत कम लोग गंभीर विषयों पर शोध लेखन के लिए आगे आते है और यह भी विचारणीय है कि बहुत कम उन्हें प्रोत्साहित करते है। इस दिशा में हिंदी की समृद्धि हेतु ध्यान दिया जाना ज़रूरी है। 



Sunday, September 11, 2022

आज के समय में विनोबा भावे की प्रासंगिकता

 



भूदान आंदोलन के जनक, नागरी लिपि परिषद के संस्थापक आचार्य विनोबा भावे की 127 वीं जयंती पर भावपूर्ण नमन!  आज जब देश में रीयल एस्टेट की आड़ में कृषि जोत ख़रीदने की होड़ लगी है। हर कोई ज़मीर से अधिक ज़मीन ख़रीदने की होड़ में शामिल है। अब किसान भी मुँह माँगी क़ीमत पर अपनी ज़मीन बेच रहे है। भारतीय ग्रामीण परंपरा की नींव दरकती जा रही है। अब हर पैसे वाला ज़मींदार है। इस होड़ के कारण भूदान आंदोलन के जनक आचार्य विनोबा भावे ज़्यादा याद आ रहे हैं। 

आज के हिंदुस्तान में ज्ञानेश उपाध्याय की विशेष प्रस्तुति को पढ़ा। सच में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की विरासतें कमज़ोर पड़ रही है। 

आलेख का एक छोटा-सा अंश

हमारा शरीर स्वयं ही प्रेम और लगाव की अद्भुत मिसाल है। अंगों में परस्पर अनुपम प्रेम होता है। सब अंग एक दूजे की सेवा में लगे होते हैं ताकि शरीर सुखी रहे ।  सोते हुए में भी एक अंग को दूसरे की फ़िक्र होती है ।  शरीर पर कहीं भी मच्छर बैठ जाए तब तत्काल हाथ उठ जाता है काश! समाज भी शरीर-सा हो जाए, जिसमें सभी को सभी की फिक्र हो लेकिन ऐसा होता नहीं है इसलिए दुख दर्द की अवस्था कही न कही बची-बनी रहती है।  जब प्रेम का अभाव होता है, तब दुःख अक्सर घृणा में बदल जाता है और घृणा ही हिंसा पर उतारू हो जाती है। 

आज देश की युवा पीढ़ी अपनी भाषा और लिपि को हीनता बोध से देखती है। रोमन लिपि की अपसंस्कृति हावी है। ऐसे में उनके विचारों को आज अपनाने की ज़्यादा ज़रूरत है।

#भूदान

#रोमन

#देवनागरी

#साकेत_विचार

Thursday, September 1, 2022

राही मासूम रज़ा और हिंदी


यह सुखद संयोग है कि हिंदी एवं उर्दू के महान कवि,संवाद लेखक, उपन्यासकार एवं महाकाव्य ‘महाभारत’पर आधारित ऐतिहासिक टेलीविजन धारावाहिक ‘महाभारत’ की पटकथा लिखकर अपनी लेखनी को अमर करने वाले डा. राही मासूम रजा की जयंती से देश के संपूर्ण सरकारी  कार्यालयों में हिंदी माह/पखवाड़ा-2022 की शुरूआत हो रही है।  हम सभी ने जगजीत सिंह की आवाज में अमर गीत ‘हम तो है परदेश में, देश में निकला होगा चांद‘ को जरूर सुना होगा।इस मधुर गीत को कलमबद्ध करने वाले डा. राही मासूम रजा ही थे।   इस प्रसिद्ध गीत का भाव बोध हमारी मिट्टी, भाषा, संस्कृति से प्रेम पर आधारित है।  हम सभी अपनी मिट्टी, भाषा, संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़े हुए है।बिना इसके मानव का अस्तित्व नहीं है।  हिंदी केवल एक भाषा-मात्र नहीं है वरन्न यह सभी भारतीय भाषाओं, बोलियों का क्रियोलाइजेशन है।  इससे सभी भारतीय प्रेम करते है।  यह राजनीति, संस्कृति, समाज,लोक की भाषा है।इसीलिए यह लोकभाषा, संस्कृति की भाषा, संपर्क की भाषा, राष्ट्रभाषा से होते हुए राजभाषा के पद पर आसीन हुई और अब संचार की भाषा से तकनीक की भाषा के रूप में परिवर्तित होकर विश्व भाषा के रूप में उपस्थित है।   आज विश्व धरातल पर हिंदी भारतीयता की पहचान बन चुकी है।क्योंकि हम भारतीयों की पहचान विश्व धरातल पर हिंदू, हिंदी एवं इंसानियत से होती है। वास्तव में हिंदी आमजन की भाषा है और लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती देने के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी जन से जुड़े। तंत्र की सफलता भी आम जन की सफलता है।  इसी का नतीजा है आज अधिकांश योजनाओं की सफलता आम आदमी के बेहतर समन्वय पर आधारित है।   आइए, इसी भाव बोध को समर्थन देते हुए हिंदी को एक नया आयाम दें।       सादर,   डा. साकेत सहाय

सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...