Friday, April 24, 2020

सड़कें खाली हैं .. ..



सड़कें खाली हैं …………………




सड़कें खाली हैं ..

सूनी हैं …

महानगर और नगर की

शहर और कस्बों की

गाँवों के पगडंडियों की ।




पर

बत्तियाँ जल रही हैं

कीट, पतंगें, पशु-पक्षी

सब दिख रहे हैं

नहीं दिख रहा तो बस

आदमी

जो मानव से दानव बनने चला था

विज्ञान को विकृत-ज्ञान बनाने पर तुला था

हथियार को ही सब कुछ मान बैठा था

परम-पिता को ही चित्त करने चला था

था तो वह परमात्मा की अपूर्व, अप्रतिम कृति

पर वहीं सबसे बड़ा विनाशक निकला




आज सब कुछ है पर एक डर है

भले आकाश नीला है

धरती खामोश है

नदियां साफ है

पर वे कुछ बोलना चाहती हैं

क्या कोई इन्हें सुनना भी चाहता है ।




कोरोना एक संकेत है

हे मानव !

सुधर जाओ

अपनी इच्छाओं को अनंत बनाओ

पर प्रकृति के अनुरूप

मानव की प्रकृति तो विध्वंसक की नहीं होती

अत: प्रकृति की सुनो,

आओ फिर से धरती को स्वर्ग बनाओ

© डॉ साकेत सहाय


































3 comments:

pranita sahay said...

Nicely written poem which described everything what is happening in current world

स्मृति शालीन said...

सुंदर एवं सत्य

www.vishwakeanganmehindi.blogspot.com said...

हार्दिक आभार , कविता पसंद करने एवं उत्साहवर्धन हेतु ।

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