भांग -एक लघु कथा
भांग
वो सामने वाली बर्थ पर था.. अचानक बड़े उत्साह से उसने पूछा.. आप मुस्लिम हो..?! लगते तो नहीं।
मैंने पूछा कैसे … उसने कहा कोई दाढ़ी, टोपी नहीं।
उसने फिर पूछा अच्छा कहाँ से हैं मैंने कहा- छोड़िए न। अब वह अपनी रौ में आ गया, अरे! हमारी बड़ी ख़राब स्थिति है। हमारे लोगों को मारा जा रहा है? हमें दोयम दर्जे का समझा जाता है। इस सरकार में तो हमारी हर जगह यही स्थिति है।
मैंने कहा- जो मारे गये वे तो अपराधी थे। उन्होंने सैकड़ों निर्दोषों का खून किया था, फिर आपका क्या रिश्ता? सरकार को अपना काम करने दीजिये। सरकार तो सबके लिए काम करती है। उसके द्वारा किए गए विकास कार्य का फ़ायदा तो सबको मिलता है।
उसने ग़ुस्से में मुझे देखा और कहा लगता है आप काफिर हो। इस सरकार ने तो हमारा जीना हराम करके रखा है।
मैंने कहा सरकार के अच्छे और बुरे कार्य का मूल्यांकन धर्म और जाति के आधार पर करना बेहद ग़लत है। यह देश को बाँटने की नापाक साज़िश है। मैं भी मुस्लिम, अंसारी, सैयद, पठान से पहले एक भारतीय के रूप में सरकार के कार्यों का मूल्यांकन करता हूँ।
उसका चेहरा उतर गया था..वो ग़ुस्से में बहुत कुछ बुदबुदा रहा था..जो मुझे साफ सुनाई दे रहा था..
" कैसा पागल है, धर्म, जाति के नाम पर भी अलग दिख रहा है। देश और समाज की बात कर रहा है । क्या ऐसे लोग रहते तो पाकिस्तान बना होता…"
मैं सोच में पड़ गया, कहाँ जा रहे हैं हम🥲☺️😒
( डॉ साकेत सहाय )
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