Tuesday, April 23, 2024

हनुमान जयंती



 आज हनुमान जयंती है। हनुमानजी सर्वप्रिय देवता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अनन्य भक्त के रूप में आप सर्व पूजनीय है। आज ही के दिन माता अंजनी की गोद में बजरंग बली बालरूप में प्रकट हुए थे। यह अद्भुत संयोग है कि चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी पर प्रभु श्रीराम जन्मे और उनके अनन्य भक्त पूर्णिमा की तिथि को।  राम भक्त हनुमान जी निर्भयता, विश्वास के देवता हैं। यह उनका स्वयं एवं प्रभु के ऊपर विश्वास ही था जो पृथ्वी की जीवन धारा के प्रतीक सूर्य को मुंह में रख लेने से लेकर समुद्र लांघने, ताड़का वध तक के काम उनसे करवा देता है।

डर के आगे जीत है। डर को जीतने की कला में वे निपुण हैं। हनुमान जी से यह सीखा जा सकता है कि जिसने भी उनके मन में भय पैदा करने की कोशिश की, लेकिन वे अपनी बुद्धि और शक्ति के बल पर उनको हरा कर आगे बढ़ गए। डर को जीतने का पहला प्रबन्धन सूत्र हनुमान जी से सीखा जा सकता है कि अगर आप विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ना चाहते हैं तो बल और बुद्धि दोनों से काम लेना आना चाहिए। जहां बुद्धि से काम चल जाए वहां बल का उपयोग नहीं करना चाहिए। 

रामचरित मानस के सुंदरकांड का प्रसंग है “सीता की खोज में समुद्र लांघ रहे हनुमान जी को बीच रास्ते में सुरसा नाम की राक्षसी ने रोक लिया और हनुमान जी को खाने की जिद करने लगी। हनुमान ने उसे बहुत मनाया, लेकिन वह नहीं मानी। वचन भी दे दिया, राम काज करके आने दो, माता सीता का संदेश उनको सुना दूं फिर खुद ही आकर आपका आहार बन जाऊंगा। सुरसा फिर भी नहीं मानी। वो हनुमान जी को खाने के लिए अपना मुंह बड़ा करती, हनुमान जी उससे भी बड़े हो जाते। वो खाने की जिद पर अड़ी रही, लेकिन हनुमान जी पर कोई आक्रमण नहीं किया। यह बात हनुमान जी ने समझ ली कि मामला मुझे खाने का नहीं है, सिर्फ आत्म बल के जाँच की बात है। समय के अनुरूप हनुमान जी ने तत्काल सुरसा के बड़े स्वरूप के आगे अपने को बहुत छोटा कर लिया। उसके मुंह में से घूमकर निकल आए। सुरसा खुश हो गई। आशीर्वाद दिया और लंका के लिए जाने दिया।”

सीख यही है कि ‘जहां विषय अहंकार के शमन का हो, संतुष्टि का हो, वहां बल नहीं, बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए।’ हनुमान जी ने ही सिखाया है कि बड़े लक्ष्य को पाने के लिए अगर कहीं झुकना भी पड़े, झुक जाइए।  राम भक्त हनुमान शैव और वैष्णव धाराओं के मध्य समर्पण, विश्वास, प्रेम, करुणा, त्याग के अनन्य रूप हैं। उन्हें भगवान शिव का ग्यारहवां अवतार रूद्र कहा जाता हैं जो भगवान राम के अनन्य भक्त हैं। यह भक्त बल का अद्भुत प्रताप है कि बिना हनुमान जी की पूजा के भगवान श्रीराम की पूजा पूर्ण नहीं होती।  उनका तेज एवं बल प्रभु श्रीराम के समान है। वे भक्त की मर्यादा के अनुरूप प्रभु के यश-कीर्ति में श्रीवृद्धि करते हैं। माता सीता ने उन्हें अपना पुत्र माना था। भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के समय पूर्ण समृद्धि एवं एकता के लिए हनुमान जी  चार समुद्र और 500 नदियों  से जल लेकर आए थे। इसे उनकी असाधारण शक्ति एवं समर्पण का प्रतीक मान सकते हैं। 

हनुमान जी बुद्धि, विवेक, धैर्य और विनम्रता के देवता हैं। ‘भूत, पिशाच निकट नही आवै’ पाठ के द्वारा हम सभी उन्हें नित स्मरण करते है। सुंदरकांड में हनुमान जी का संदेश है कि कभी-कभी किसी के सामने छोटा बनकर भी उसे पराजित किया जा सकता है। शत्रु बड़ा हो तो उससे डरे नहीं, बुद्धिमानी का उपयोग करें और आत्मविश्वास बनाए रखें। लक्ष्य बड़ा हो तो हमें विश्राम करने में या किसी से युद्ध करने में समय नष्ट नहीं करना चाहिए।

भारत से जब एक विमान में 30 लाख कोविड-१९ टीके की खुराक ब्राजील पहुंचा तब ब्राजील के राष्ट्रपति ने हनुमान जी की संजीवनी बूटी लाते हुये तस्वीर का फोटो ट्वीट करते हुए धन्यवाद भारत लिखा था। आप सभी को इस मंगल दिवस की बधाई!  विशेष आप सभी इस आलेख को मेरे ब्लॉग पर भी पढ़ सकते हैं।



 जय बजरंग बली 🙏

सादर, 

डॉ साकेत सहाय

२३.०४.२०२४

Wednesday, April 3, 2024

शब्द यात्रा

 *आज  "नैहर", "पीहर" और  "मायका" शब्दों  से  मिलिए, आपको गुज़रा ज़माना याद करके अच्छा  लगेगा*  !

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.नैहर 

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'नैहर' का मतलब होता है- ' पिता का घर'  यानी  मायका  ! नैहर शब्द संस्कृत के 'ज्ञातिगृह'  से बना है ! ' ज्ञा'  धातु में  'क्तिन' प्रत्यय लगने से  'ज्ञातिगृह'  बना  जिसका अर्थ होता है -  पितृ-गृह, जान-पहचान वाले, सगे-संबंधी,  नाते-रिश्तेदार आदि आदि ! ‘ज्ञा’  धातु  में  ‘ जानने ‘  का भाव निहित है, मतलब  कि  जिसके बारे में हमें ‘ ज्ञात’ है यानी  जो हमारे लिए  ‘ अज्ञात’  या  ‘अंजान’ नहीं है ! इस  ‘ ज्ञान',  जानकारी, में व्यक्ति, स्थान, वस्तु,  से लेकर ज्ञानेन्द्रियों  से होने  वाले  ‘एहसास’  भी शामिल  होते हैं ! तात्पर्य  यह है कि ‘ज्ञाति ‘  शब्द में वे  सब चीजे  आती है,  जिन्हें हम भलीभाँति जान  चुके है ! जब यह शब्द ‘ गृह’  शब्द का जुड़  कर प्रयोग  में आया तो,  इसका  अर्थ  उन  व्यक्तियों के समूह से माना  गया, जो  हमसे  विशेषरूप से  सम्बन्धित  है, जो हमारे  रिश्तेदार है और  एक  ही ‘ घर’ मे रहते  हैं ! 

यद्यपि ‘हर’ शब्द का प्रयोग अब  नहीं के बराबर  होता है लेकिन पहले  उत्तर भारत में यह शब्द  आम  जनता की जुबान पर हुआ  करता  था ! मैंने  अपन बचपन में नानी,  दादी,  मौसी,  मामी को अक्सर बोलते सुना  - 

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चलो, कमला 'हर'  के चलते है !  आज शीला 'हर'  के दावत है !

. 'हर'  'घर'  के  लिए  प्रयुक्त होता था !

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. प्राचीन  लोक-गीतों में  भी  यह शब्द  बहुत प्रचलित था ! लेकिन बीतते समय के साथ आधुनिक सभ्यता-संस्कृति के  प्रभाव से यह शब्द  लुप्त प्राय:  हो गया ! फिर भी इसके  ‘योग’ (जोड़) से बने शब्द  किस्से-कहानियों में कभी-कभी पढ़ने  और  सुनने मे आ ही जाते हैं !


 ‘ज्ञाति-गृह’ से नैहर  शब्द किस  प्रकार  निकला, अब इसका  व्याकरण  जानिए !

ज्ञ – यह एक  संयुक्त  व्यंजन है जो  ज्  + ञ् के संयोजन से बना है ! ‘ञ् ‘ एक अनुनासिक व्यंजन है जो नासिका  से उच्चरित  होता है ! मतलब इसमें कहीं ‘न’ व्यंजन की ध्वनि समाहित है ! ज्ञातिगृह  शब्द, ‘नैहर’  में क्रमश: इस प्रकार परिवर्तित हुआ –

ज्ञातिगृह – नातीगृह- नातीघर - त  का लोप – ना + इ = नै –

गृह – ग्+र+ह – ग्  का लोप- र+ह – वर्णविपर्यय = ह+र – हर

इस तरह नै +हर = नैहर शब्द अस्तित्व में आया |

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.'पीहर' भी  संस्कृत के  -' पितृ-गृह' से  नि:सृत  है !

पितृ से तद्भव रूप बना 'पी' और  'गृह' से 'हर' शब्द बना, जैसा कि ऊपर मैंने व्युत्पत्ति  बताई |

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 'मायका'  – माँ का घर  !  यह शब्द संस्कृत  के  ‘मातृक’  से निकला है ! ‘मातृक’  शब्द ,  ‘मातृ’  में + 'क' प्रत्यय  लग कर बना  है । संस्कृत में  ‘मातृक’ का अर्थ होता हैं, माता संबंधी,  जिसमें  लालन-पालन व पोषण आदि का भाव भी  समाहित है !  ‘मातृक’  के समान ही  पिता से जुड़ा  शब्द है - ‘पैतृक’ ! आपने सुना  होगा  -  ‘पैतृक सम्पति’ जिसका अर्थ पिता संबंधी  जायदाद आदि!

इस  ‘मातृक’  में धन, समृद्धि, ऐश्वर्य आदि  अर्थ भी ,समाहित  हैं। मातृक - पैतृक स्थान भी कहा  जाता है यानी  जन्म स्थान  । मातृक से ही माता, माई, मायी, मैया, शब्द  अस्तित्व में आए – ‘जन भाषा’  के रूप में ! इस प्रकार  ‘मायका’  के मूल में  ‘मातृक’  है, जो  परिवर्तित होते-होते माहेर, माएरा, मायरा, मायका,अनेक रूपों में जनभाषा में उतरा ! है न रोचक "शब्द-यात्रा"|

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~ *प्रो दीप्ति गुप्ता,पुणे*

सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...