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दिनकर जी और राष्ट्रभाषा

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  राष्ट्रभाषा हिंदी के सशक्त हस्ताक्षर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन!  उन्हीं की कुछ पंक्तियाँ - भारत कोई नया देश नहीं है। जिस भाषा में उसकी संस्कृति का विकास हुआ, वह संसार की सबसे प्राचीन भाषा है।  जो ग्रंथ भारतीय सभ्यता का आदि-ग्रंथ समझा जाता है, वही समग्र मानवता का भी प्राचीनतम ग्रंथ है। विदेशियों के द्वारा बार-बार पद-दलित होने पर भी भारत अपनी संस्कृति से मुँह मोड़ने को तैयार नहीं हुआ । अब जो वैज्ञानिक और औद्योगिक सभ्यता आ रही है, वह भी भारत से उसके अतीत का प्रेम नहीं छीन सकेगी। सत्य केवल वही नही है, जो पिछले दो सौ वर्षों में विकसित हुआ है। उस ज्ञान का भी बहुत-सा अंश सत्य है, जिसका विकास पिछले छह हजार वर्षों में हुआ है। भारत को वह नवीन सत्य भी चाहिए, जो शारीरिक समृद्धि को संभव बनाता है, और प्राचीन काल का वह सत्य भी जो शारीरिक समृद्धि को संभव बनाता है, और  प्राचीन काल का वह सत्य भी जो शारीरिक समृद्धि के लिए आत्मा के हनन को पाप समझता है।   - रामधारी सिंह दिनकर  आइए दिनकर जी की जयंती पर इन पंक्तियों को स्मरण करें । ‘तुम कौन थ...

शिक्षक दिवस का अर्थ

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भारत जैसे देश में जहां गुरु का स्थान सर्वोपरि है।  यह दिन हम विद्यार्थियों के लिए भी बेहद खास है। भारत में यह दिवस डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के व्यक्तित्व के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करने के लिए मनाया जाता है। डॉ राधाकृष्णन ने कहा था-शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि  वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें ।   भले ही आज शिक्षक की परिभाषा में व्यापक बदलाव आया है। पर हमारे सामाजिक बोध में आज भी शिक्षक, गुरु की भूमिका में ही बसे हुए हैं ।  हालांकि शिक्षक की भूमिका में आए बदलाव हेतु दोषी आधुनिक शिक्षा पद्धति भी हैं । जहां शिक्षा का पर्याय ज्ञान से अधिक रोजगार हो चला हैं।  शिक्षा का बोध मात्र डिग्री तक सीमित हो चुका है। यह उस भारतीय ज्ञान  परंपरा के लिए बेहद घातक है जहां गुरु की महिमा का पता सहज ही इस श्लोक से लगाया जा सकता है-   गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।  गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ आज व्यक्ति अपनी  इच्छाओं एवं आकांक्षाओं के बोझ ...