राष्ट्रभाषा हिन्दी के पक्ष में जबर्दस्त बदलाव.........
बीते सोमवार को यानि दिनांक 24 अगस्त 09 को नई दिल्ली में आयोजित माध्यमिक शिक्षा परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने देश के सभी स्कूलों में हिन्दी की पढ़ाई अनिवार्य करने की जोरदार वकालत की। मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि इससे हिन्दी भाषी और गैर हिन्दी भाषी क्षेत्रों के छात्रों के बीच जुड़ाव मजबूत होगा।
श्री सिब्बल ने अपने भाषण में कहा कि एक बार पूरे देश में हिन्दी का प्रचलन बढ़ जाए तो भारत को जानकारियों के लिए दूसरों की तरफ ताकना नहीं पड़ेगा। उन्होंने हिन्दी का दायरा मातृभाषा से बढ़ाकर ‘’ज्ञानोत्पादक’’ और ‘’सबको एक सूत्र में बाँधने वाली भाषा’’ तक ले जाने की जोरदार वकालत की। इस उद्दरण से समझा जा सकता है कि हिन्दी की स्वीकार्यता राजनैतिक रुप से भी बढ़ रही है।
आजादी के पूर्व हिन्दी की व्यापक पहुँच के कारण हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने इसे संपर्क भाषा के रुप में महत्ता दी। बाद में, इन्हीं गुणों के कारण संविधान निर्माताओं ने इसे संघ की राजभाषा का दर्जा दिया। फिर धीरे-धीरे हिन्दी सिनेमा, आकाशवाणी और दूरदर्शन के सहयोग से हिन्दी ने देश की सांस्कृतिक जनभाषा का दर्जा पाया। बाद में उदारीकरण और वैश्वीकरण ने तो हिन्दी की आर्थिक महत्ता में जबर्दस्त बदलाव लाया। और हिन्दी बाजार की प्रमुख भाषा बनकर उभरी।
आज हिन्दी बिना किसी लाग-लपेट के आगे बढ़ रही है। और इसी का नतीजा है कि हमारे मानव संसाधन मंत्री ने इसे अनिवार्य बनाने की वकालत की। अगर हाल के उनके इस कदम की ओर नज़र दौड़ाए जिसमें उन्होंने पूरे राष्ट्र में एक शैक्षिक बोर्ड बनाने की वकालत की थी तो इसमें भी उनका यह कदम काफी सहायक सिद्ध होगा।
हिन्दी को अनिवार्य बनाने से कई फायदे होंगे। पहला तो, हिन्दी; विश्व की प्राचीनतम भाषा एवं देश की अधिकांश भाषाओं की जननी संस्कृत की छोटी बहन मानी जाती है। दूसरा, हिन्दी उर्दू के काफी नजदीक है। तीसरा, हिन्दी अपनी संपर्क भाषा के गुणों एवं भाषायी स्वीकार्यता के चलते पूरे देश में व्यापक रुप से स्वीकृत हुई है।
विशेष हमारे ब्लॉग के प्रथम आलेख हिन्दी का बदलता स्वरुप को पढ़े।
धन्यवाद !
भवदीय,
-साकेत सहाय
हिंदी विश्व में भारतीय अस्मिता की पहचान है। हिंदी भारत की राजभाषा,राष्ट्रभाषा से आगे विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस
आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है। आज 'भारतीय भाषा दिवस' भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...
-
आज महान देशभक्त, भारतरत्न, भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की १२२ वीं जयंती है। भारत-पाक युद्ध में जय जवान! जय किसान! का उद्...
-
प्रयागराज कुंभ हादसा-एक अनहोनी थी, जो घट गई। प्रयागराज में जो हुआ दुखद है, अत्यंत दुखद। प्रयागराज कुंभ में भगदड़ मचने की वजह से असमय ही कुछ...
-
आज़ भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस), हैदराबाद में भाषा मंथन परिचर्चा के तहत विशिष्ट अतिथि के रूप में मुझे जाने का सुअवसर मिला। इस अवसर पर मैंने ...
6 comments:
आपका यह प्रेक्षण वास्तविकता है; यह शुभ संकेत भी है। कपिल सिब्बल के की सोच पूरे देश की सोच बने, यही कामना है।
प्रिय साकेत जी हिन्दी के साथ जो कुछ भी हुआ है अब तक वह हमारे राजनेताओं की उदासीनता के कारण ही रहा वरना अब तक तो हिंदी राष्ट्रभाषा और राजभाषा के साथ ही उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की भी भाषा बन चुकी होती। आप और हम इसी तरह हिंदी के कोश को बढ़ाते रहें बस इतना हमारे हाथ में है। साधुवाद स्वीकारिये
हिन्दी दिवस पास आ रहा है क्या? :) जो मंत्रियों को इसकी चिन्ता होने लगी…
बहुत ही अच्छा आलेख.
हिन्दी की दुर्दशा की सबसे बड़ी वजह राजनेता ही हैं। और वे लोग भी जो हिन्दी को जबरन थोपना चाहते हैं। मैं हैदराबाद में करीब साढ़े तीन साल रहा हूं। जहां तेलुगु और हिन्दी बराबर बोली जाती है। लेकिन अगर वहां जबरन हिन्दी थोपा जाएगा तो तेलुगु भाषी प्रतिक्रिया स्वरुप हिन्दी को नकारने लगेंगे। हिन्दी को लोग अपने आप स्वीकार करेंगे। बस उसे रोजगार से जोड़ने की राजनेताओं में माद्दा होनी चाहिए। संजय कुमार
Is blog ke roop me aap ek mahatvpurn prayas kar rahe hain.Shubkamnayen.
Post a Comment