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आजकल अखबारों में, टी.वी. विज्ञापनों में, बाघों को बचाने की बड़ी मुहिम सुनाई पड़ती है। ऐसा क्यों होता है कि हम नींद से तभी जागते है जब पानी सर से ऊपर गुजर जाता है। बात केवल बाघ की ही नहीं है। ऐसा हमारे देश के अधिकांश चीजों में होता है।

ऐसा लगता है भारतीय प्रतीकवाद में ज्यादा विश्वास करते है। तभी तो हमारे अधिकांश राष्ट्रचिन्ह, प्रतीकों का ऐसा हश्र हो रहा है। आज हम बाघ के विलुप्त होने पर हो-हल्ला मचाए हुए है और कल राष्ट्रीय पक्षी मोर के विलुप्त होने पर शोक मनाएंगे। और-तो-और, हमारे राष्ट्रचिन्ह का वास्तविक स्थल भी आज क्षरण होने के कगार पर है। लेकिन हम सभी दो-चार ब्यानबाजी के अलावा करते ही क्या है ? ऐसा हम अपने सामाजिक, राजनैतिक जीवन के प्रत्येक अंश में देख सकते है। हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी की दुर्गति का ही उदाहरण लें ले। पिछ्ले करीब बीस वर्षों से राष्ट्रीय खेल हॉकी के पतन की बात सुनते आ रहे है लेकिन आज भी हॉकी वहीं की वहीं खड़ी है। राजभाषा हिंदी भी इसी प्रतीकवाद के नियति का शिकार हो रही है। जिसे हमारे संविधान ने तो उचित पद का अधिकारिणी बना दिया। लेकिन प्रतीकवाद के तौर पर। यही कारण है कि सरकारी कागजों में तो हिन्दी हर जगह दिखती है लेकिन वास्तविक तौर पर नही।

शायद हम भारतीय इन प्रतीकों की उचित सम्मान देना जानते ही नहीं । इसीलिए बाघ को हमने अपना राष्ट्रीय पशु तो घोषित कर तो दिया पर परंतु उसके उचित संरक्षण की नही सोची। और, आज जब इनकी संख्या गिनती लायक बची है तो तब हम अपने उअनींदेपन से जागे है।

ये तो चंद उदाहरण भर है हम सभी के आसपास तो ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिल जायेंगें। हम भारतीय आए दिन अपनी 5,000 साल पुरानी सभ्यता का गौरवपूर्ण आख्यान तो करते है लेकिन उसके महत्व को नहीं समझते। ऐसा क्यों है ? जरुरत है हम सभी को आत्ममंथन करने की। चिंतन करने की। बाघ तो एक मोड़ है हमें जरुरत है इस मोड़ को पार कर अगले सफर पर जाने की।

Comments

Unknown said…
In the whole issue regarding tigers we,actually easily find people saying that what can we do as a commoner,llekin such yeh hai ki shuruat in sabhi ki humse hi hoti hai,har aam aadmi se hoti hai shuruat,aur yeh toh sadiyon se chale aarahe silsile ka sar ab dikhne laga hai,aur agar hum dosh denge toh shayd media ko denge,govt. ki is tarh ke issues ke liye woh kuch karte nahin,but actually sachai yeh ahi ki hum hi majboor karte hai unko kuch na karne par kitne interested hai hum iss tarh ki news ko dekhne mein aur Govt. ke dwaara uthaye jaane wale aise kisi bhi kadam ko viphal bhi hum hi karte hai...so not for just this issue for every issue let's think that yeh humare ghar ki baat hai,jaise hum pareshan hote hai ghar mein kuch galat hota ahi uske liye waise he let's take the Ownership feel in ourselves..........

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