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हरियाणा का गुड़गाँव

जिस शहर में एक साथ तकनीक , ज्ञान - विज्ञान एवं देशी परंपरा एवं विरासत के दर्शन होते हैं वह शहर भारत का गुड़गांव यानि गुरूग्राम है। साइबर सिटी के रूप में ख्यात गुरूग्राम प्रति व्यक्ति आय के आधार पर भारत के दूसरे सबसे धनी राज्य हरियाणा प्रदेश की आर्थिक राजधानी भी माना जाता है। यह शहर गुरूग्राम जिले का मुख्यालय होने के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण अंग है। जहां गूगल से लेकर अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुख्यालय स्थित हैं। जिसमें भारत सरकार के अग्रणी बैंकों में शामिल ओरियन्टल बैंक ऑफ कॉमर्स का कॉरपोरेट कार्यालय भी शामिल है।   ओरियन्टल बैंक ऑफ कॉमर्स भारत का एकमात्र सरकारी बैंक है जिसका कॉरपोरेट कार्यालय हरियाणा प्रदेश में स्थित हैं। गुड़गाँव दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग और दिल्ली मेट्रो के माध्यम से अपनी सीमा साझा करता है। यह भारत का एकमात्र पहला ऐसा शहर है जिसके प्रत्येक घर में बिजली की आपूर्ति होती है। बिज़नेस टुडे पत्रिका के द्वारा आवासीय रैंकिंग की दृष्टि से इस शहर को अखिल भारतीय स्तर पर 11 वां स्थान प्राप्त हुआ है।   विगत 25 वर्षों में इस शहर ने बहुत त

2019 का चुनाव

2019 का चुनाव! #अधिकांश मीडिया संगठनों, पत्रकारों द्वारा भारतीय समाज को विशेष रूप से हिंदू समाज को जातिगत भेदभाव के आधार पर बांटा जाता है। यह गलत है। दलित, ओबीसी, अगड़ों के आधार पर चुनावी मतों का निर्धारण किया जाता है। नेताओं के टिकट तय किये जाते हैं । यह गलत है। भारतीयता का अपमान है। मीडिया जिसे चौथा खंभा माना जाता है वह भी इस खेल में शामिल हैं। आज दलित , अगड़ा कोई नही है सब पैसों का खेल हैं । जो संपन्न है वह अगड़ा है और जो वंचित  है वह दलित हैं। हमें इस आधार पर हिंदुओं या किसी भी संप्रदाय को विभाजित नही करना चाहिए । मैं यह सब अधिकांश चुनावों में देखता हूँ । इसका प्रबल विरोध होना चाहिये । विकसित भारत  का चुनाव सर्व भारतीय समाज के आधार पर होना चाहिए । न कि दलित, पिछड़ा, ओबीसी, अगड़ी जाति के आधार पर होना चाहिए । भारतीयता की पहचान है -सभी का समावेश । उसमें धर्म, जाति न हो । एक भारतीय नागरिक का विकास पहला उद्देश्य हो। भले ही यह सोच धीरे-धीरे विकसित हो पर जोरदार कोशिश तो हो। आजादी के पहले अंग्रेजों ने इस देश को विभाजित सोच के आधार पर बाँटा। बाद में वामपंथी, समाजवादी,  दक्षिणपंथी पार
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जब अधिकारी के कहने पर नेहरुजी ने संदेश हिंदी में पढ़ा  ...... वर्ष  1962  की बात   है ,  भारत-चीन युद्ध चल रहा था। चीन ने पंचशील समझौते का उल्लंघन कर भारत पर अचानक   आक्रमण कर दिया था। युद्ध को लेकर भारत की कोई तैयारी नहीं थी। अत: भारत कमजोर   पड़ता जा रहा था। चारों ओर निराशा का माहौल था।     प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देशवासियों को निराशा से उबारने के लिए आकाशवाणी से राष्ट्र के नाम संदेश    देना तय किया। उस समय आकाशवाणी के प्रभारी अधिकारी मोहन सिंह सेंगर थे। वे   प्रधानमंत्री के आवास पर रिकॉर्डिग के लिए गए।    कार्यक्रम के अनुसार   प्रधानमंत्री को संदेश का मूल पहले अंग्रेजी में पढ़ना था ,  फिर उसका हिंदी अनुवाद   पढ़ना था। सेंगर साहब को यह नहीं जंचा कि अंग्रेजी को अहमियत देकर उसे मूल पाठ के   रूप में पढ़ा जाए और राष्ट्रभाषा हिंदी को अनुवाद की भाषा बनाकर उसके साथ सौतेला व्यवहार किया जाए।  वे नेहरूजी से बोले- सर! आपातकाल के इस समय में भारत का   प्रधानमंत्री हिंदी संदेश अनुवाद के रूप में पढ़े ,  यह ठीक नहीं लगता। ऐसे समय में   आप यदि मूल हिंदी में ही बोलें तो प्रभावी रहेगा।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संत कबीर की प्रासंगिकता

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वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संत कबीर की प्रासंगिकता संत साहित्य में अपभ्रंश व सिद्ध , जन साहित्य , नाथ पंथ और वैष्णव भक्ति आंदोलनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। संत नामदेव , गुरूनानक महाराज , दादूदयाल , सुंदरदास , रज्जबदास , मलूकदास , सहजोबाई इत्यादि का संत साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। परंतु इसमें कोई दो राय नहीं कि संत धारा साहित्य में कबीरदास अग्रिम अधिकारी रहे हैं। हिंदी संत काव्य की दृढ़ नीव रखने वाले कबीरदास हुए हैं।   कबीरदास के साहित्य का मुख्य उद्देश्य कर्मकांड की विसंगतियों को दूर कर समतामूलक समाज की स्थापना करना रहा। कबीरदास एक संतकवि होने के साथ ही एक समाज सुधारक की भूमिका में भी थे और जातिविहीन समाज व नारी अधिकारों के सचेतक थे। संत साहित्य का प्राण तत्त्व है-लोक धर्म।  सत रुपी परम तत्व का साक्षात्कार कर लेने वाले व्यक्ति को संत कहा जाता है।  डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने संत का संबंध ‘ शांत ’ से माना है और इसका अर्थ निरूपित किया है – निवृत्ति मार्गी या वैरागी।  सामान्यत: सदाचार के लक्षणों से युक्त व्यक्ति को संत कहा जाता है।  जो आत्मोन्नति एवं लोकमंगल में