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इतिहास और भारतीय सोच

  आमतौर पर इतिहास की परिभाषा ‘अतीत की घटनाओं के आईने’ से है। अर्थात् , बीती हुई घटनाओं का वर्णन इतिहास में किया जाता है। वास्तव में इतिहास हमें न केवल उन घटनाओं की जानकारी मुहैया कराता है वरन् उन पर सोचने को विवश कर हमें एक संतुलित सोच विकसित करने का भी स्त्रोत मुहैया कराता है। वैसे भी प्राचीनकाल में इतिहास को एक विषय भर नहीं वरन सारे विषयों का स्रोत माना जाता था। मगर, भारत के सन्दर्भ में ऐसा नहीं है। प्रारम्भ से ही भारत में इतिहास-लेखन की समृद्ध परम्परा का विकास नहीं था। यूँ तो भारतवर्ष में एक आम नागरिक भी अपने देश के इतिहास को जानने का दावा करता है और ये इतिहास को रामायण, महाभारत के काल से जोड़ते हैं। लेकिन तथ्यों के अभाव में यह इतिहास अधूरा माना जाता है। इतिहास में भारतीय सोच के अभाव के कारण ही हमारे अधिकांश धार्मिक-सांस्कृतिक ग्रंथ श्रुति ग्रंथ माने जाते हैं। हमारे पूर्वजों ने वाक् को महत्व दिया और शब्द को ब्रह्म माना। यही कारण है कि श्रुतियों से कहानियाँ तो ज्यादा प्रचलित हो गयी। मगर , कई ऐतिहासिक बातें भी कल्पित मानी गयी।   रामायण, महाभारत में ऐसी कई बातें है जो वर्तमान