जब अधिकारी के कहने पर नेहरुजी ने संदेश हिंदी में पढ़ा ......
वर्ष 1962 की बात है, भारत-चीन युद्ध चल रहा था। चीन ने पंचशील समझौते का उल्लंघन कर भारत पर अचानक आक्रमण कर दिया था। युद्ध को लेकर भारत की कोई तैयारी नहीं थी। अत: भारत कमजोर पड़ता जा रहा था। चारों ओर निराशा का माहौल था।   प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देशवासियों को निराशा से उबारने के लिए आकाशवाणी से राष्ट्र के नाम संदेश  देना तय किया। उस समय आकाशवाणी के प्रभारी अधिकारी मोहन सिंह सेंगर थे। वे प्रधानमंत्री के आवास पर रिकॉर्डिग के लिए गए।  कार्यक्रम के अनुसार प्रधानमंत्री को संदेश का मूल पहले अंग्रेजी में पढ़ना था, फिर उसका हिंदी अनुवाद पढ़ना था। सेंगर साहब को यह नहीं जंचा कि अंग्रेजी को अहमियत देकर उसे मूल पाठ के रूप में पढ़ा जाए और राष्ट्रभाषा हिंदी को अनुवाद की भाषा बनाकर उसके साथ सौतेला व्यवहार किया जाए।  वे नेहरूजी से बोले- सर! आपातकाल के इस समय में भारत का प्रधानमंत्री हिंदी संदेश अनुवाद के रूप में पढ़े, यह ठीक नहीं लगता। ऐसे समय में आप यदि मूल हिंदी में ही बोलें तो प्रभावी रहेगा। नेहरूजी ने तत्काल कहा- हां! तुम ठीक कहते हो। मूल हिंदी में संबोधित करना ज्यादा ठीक रहेगा और नेहरूजी ने संदेश का मूल पाठ हिंदी में ही किया। वस्तुत: हमारी विचाराभिव्यक्ति में सर्वोपरि स्थान राष्ट्रभाषा का होना चाहिए। अन्य भाषाओं का ज्ञान रखकर उनका उपयोग करना बुरा नहीं है, किंतु महत्व सदा अपनी भाषा को देना चाहिए।


- साकेत सहाय 

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