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Showing posts from October, 2011
कहते है बिना विश्वास के कुछ नहीं होता, और इसी विश्वास पर दुनिया कायम है, मैंने इसी विश्वास पर चंद पंक्तियां लिखी है, आशा है आप सभी को पसंद आएगी......  विश्वास .............. आज भी मौजू़द है दुनिया में नमक की तरह , अब भी पेड़ों के भरोसे पक्षी सब कुछ छोड़ जाते हैं , बसंत के भरोसे  वृक्ष बिलकुल रीत जाते हैं , पतवारों के भरोसे नाव समुद्र लांघ जाती   हैं , बरसात के भरोसे बीज धरती में समा जाते हैं , अंजाने पुरुष के पीछे सदा के लिये स्त्री चल देती हैं। मां ममता के पीछे अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है। मातृभूमि के लिए वीर अपनी आहूति देते है। यदि विश्वास नही होता तो ये जमीं नही होती, ये आस्मां नही होता। ये लोक का विश्वास है कि परलोक के सहारे ये अपना भविष्य सुधारती है। फिर क्यूं लोग पूछते है विश्वास क्या है, लेकिन मैं तो कहता हूँ विश्वास ही सब कुछ है, क्यूंकि विश्वास में आस है और इसी आस में हम और आप है हमारे रिश्तों की बुनियाद है।                                        - साकेत सहाय
  जब अधिकारी के कहने पर नेहरुजी ने संदेश हिंदी में पढ़ा ...... वर्ष 1962 की बात है , भारत-चीन युद्ध चल रहा था। चीन ने पंचशील समझौते का उल्लंघन कर भारत पर अचानक आक्रमण कर दिया था। युद्ध को लेकर भारत की कोई तैयारी नहीं थी। अत: भारत कमजोर पड़ता जा रहा था। चारों ओर निराशा का माहौल था।    प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देशवासियों को निराशा से उबारने के लिए आकाशवाणी से राष्ट्र के नाम संदेश   देना तय किया। उस समय आकाशवाणी के प्रभारी अधिकारी मोहन सिंह सेंगर थे। वे प्रधानमंत्री के आवास पर रिकॉर्डिग के लिए गए।   कार्यक्रम के अनुसार प्रधानमंत्री को संदेश का मूल पहले अंग्रेजी में पढ़ना था , फिर उसका हिंदी अनुवाद पढ़ना था। सेंगर साहब को यह नहीं जंचा कि अंग्रेजी को अहमियत देकर उसे मूल पाठ के रूप में पढ़ा जाए और राष्ट्रभाषा हिंदी को अनुवाद की भाषा बनाकर उसके साथ सौतेला व्यवहार किया जाए।   वे नेहरूजी से बोले- सर! आपातकाल के इस समय में भारत का प्रधानमंत्री हिंदी संदेश अनुवाद के रूप में पढ़े , यह ठीक नहीं लगता। ऐसे समय में आप यदि मूल हिंदी में ही बोलें तो प्रभावी रहेगा। नेहरूजी ने तत्क